गुरुवार, 21 जनवरी 2016

मेरे मयूर मन के आनन्द घन तुम्हीं हो---

।।स्थाई।।

मेरे मयूर मन के आनन्द घन तुम्हीं हो।
आराध्य प्रभु तुम्ही हो, शोभा सदन तुम्हीं हो।।

।।अन्तरा।।
हैं गोद में गगन के कोटि-कोटि तारे।
मेरे नयन के तारे हे प्राण धन तुम्हीं हो।।1।।

।।अन्तरा।।
मानो चाहे न मानो मुझ मुग्ध भृंग के।
मकरन्द मय सुगन्धित सुरभित सुमन तुम्हीं हो।।2।।

।।अन्तरा।।
अति तममयी निशा में आकुल भ्रमित पथिक को।
पावन प्रकाश पूरित दीपक किरण तुम्हीं हो।।3।।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें