मंगलवार, 1 नवंबर 2011

विश्वासों के दीप जलाकर--


विश्वासों के दीप जलाकर युग ने तुम्हें पुकारा।
सूर्य चन्द्र सा जग में आर्यों चमके भाल तुम्हारा।।


सदियां बीत गई कितनी ही छाया घोर अन्धेरा।
पल-पल बढ़ता ही जाता है, महानाश का घेरा।
जागो मेरे राम सनातन, संस्कृति को जीवन दो।
जागो कृष्णचन्द्र योगेश्वर भारत का हर जन हो।
जागो शंकर तोड़ दो जग के भव बन्धन की कारा।।1।।

अनाचार का शीश काटने, परशुराम अब जागो।
जागो भामाशाह राष्ट्र के हित में सब कुछ त्यागो।
हरिश्चन्द्र जागो असत्य की छल की रोको आंधी।
राजनीति का छद्म छुड़ाने, जागो मेरे साथी।
टूटी है पतवार दयानन्द ऋषिवर बनो सहारा।।2।।

राणा सांगा जगो शत्रु से रणकर शौर्य दिखाओ।
पवन पुत्र जग पड़ो लोभ लंका को आग लगाओ।
जोगो मेरे चिर अतीत की निष्ठाओं  सब जागो।
दो जग को प्रकाश का नूतन दान नींद अब त्यागो।
जग में शान्ति प्रेम बरसाओ बन सुरसरि की धारा।।3।।

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