खंजर से उड़ा दो चाहे मेरी बोटी-बोटी को।
दूंगा नहीं चोटी को मैं दूंगा नहीं चोटी को।।
सबसे प्यारी चीज देखो हर किसी की जान है।
इस चोटी के लिये मगर जान भी कुर्बान है।
पहिचान है मुझे मैं सब समझूं खरी खोटी को।।1।।
चोटी के बदले में लूं ना दुनिया की जागीर में ।
बांध नहीं सकते तुम मुझको जर की जंजीर में।
हकीर ना में इतना चोटी देके चाहूं रोटी को।।2।।
समझाया हकीकत जो कि हकीकत ही नाम है।
काट दो हकीकत को तुम बस का नहीं काम है।
खाम है खयाल जरा परख ले कसौटी को।।3।।
गर्दन के उतरने पर ही उतरेगा यज्ञोपवीत।
क्योंकि ये हमारी आर्यों की है पुरानी रीत।
भयभीत करना चाहते हो तुम समझ आयु छोटी को।।4।।
शीश काट सकते हो लो काट श्रीमान् मेरा।
डिगा नहीं सकते कभी धर्म से तुम ध्यान मेरा।
बलिदान मेरा पहुंचायेगा ‘वीर’ उच्चकोटि को।।5।।
रचनाः- स्व. श्री वीरेन्द्र जी ‘वीर’
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