मंगलवार, 1 नवंबर 2011

वेद अनुकूल राज बिन सारे--


वेद अनुकूल राज बिन सारे भूमण्डल का नाश हुआ।
भूमण्डल का नाश हुआ मेरे देश का भारी ह्रास हुआ।।स्थाई।।

वेद ज्ञान महाभारत काल से कुछ-कुछ घटना शुरु हुआ।
उन्हीं दिनों से म्हारा आपस में कटना पिटना शुरु हुआ।
ईश्वर भक्ति भूल गये पाखण्ड का रटना शुरु हुआ।
धर्मराज जो कहा करें थे उनका हटना शुरु हुआ।
हटते-हटते इतने हटगे बिल्कुल पर्दाफास हुआ।।1।।

दूध भैंस का ना पीते थे घर-घर गऊ पालते थे।
पीणे से जो दूध बचे था उसका घृत निकालते थे।
सामग्री में मिलाको उसको अग्नि अन्दर डालते थे।
उससे भी जो बच जाता था उसका दिवा बालते थे।
 नहीं तपेदिक जुकाम नजला नहीं किसी के सांस हुआ।।2।।

ना हिन्दू ना मुसलमान ना जैनी सिख ईसाई थे।
महज एक थी मनुष्य की जाति सब वेदों के अनुयायी थे।
पानी दूध की तरह आपस में मिलते भाई-भाई थे।
ना अन्यायी राजा थे ना रिश्वतखोर सिपाही थे।
वेद का सूरज छिपते ही दुनिया में बन्द प्रकाश हुआ।।3।।

सिर पर थे पगड़ी चीरे हाथ में सदा लठोरी थी।
राजा थे सूरजमल से और रानी यहां किशोरी थी।
शादी पच्चीस साल का छोरा सोलह साल की छोरी थी।
‘पृथ्वीसिंह बेधड़क’ कहे यहां नहीं डकती चोरी थी।
डसी तरह से फिर होज्या गर वेदों में विश्वास हुआ।।4।।

रचनाः- स्व. श्री पृथ्वीसिंह जी ‘बेधड़क’

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