संसार के वाली ने संसार रचाया है।
संसार रचाकर के कण-कण में समाया है।।स्थाई।।
गरदूं पै सितारों में कैसी चमा निराली है।
महताब में ठण्डक है और शम्स में लाली है।
कहीं श्याम घटाओं ने कैसा जल बरसाया है।।1।।
पतझड़ में बहारों में फूलों में खारों में।
तेरा रूप झलकता है रंगीन नजारों में।
भौंरों की गुंजारों ने क्या गीत सुनाया है।।2।।
कहीं निर्मल धारा है कहीं सागर खारा है।
कहीं गहरा पानी है कहीं दूर किनारा है।
जगदीश तेरी महिमा कोई जान ना पाया है।।3।।
कोई चार के कन्धों पर दुनिया से जाता है।
कोई ढोल बजाकर के बारात सजाता है।
‘बेमोल’ ये सृष्टि का कैसा चक्र चलाया है।।4।।
रचनाः- स्व. श्री लक्ष्मण सिंह बेमोल जी
please dhun bhi likhen ki kis dhun me bola jayega
जवाब देंहटाएंअँखियों के झरोखे से ------
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