ऐसी बिगड़ी है शिक्षा वतन की जो पढ़ाने के काबिल नहीं है।
नैया मझधार भारत की सजनों पार जाने के काबिल नहीं है।।
स्कूल कॉलेज में कैसी भारी लगी अग्नि है देती दिखाई।
दिन धोळे में आज रही जा अपने प्राणों से प्यारी जलाई।
सारे भारत की सन्तति सजनों जो जलाने के काबिल नहीं है।।1।।
करे कॉलेज में सिस्टर पढ़ाई और संग में चचेरा भाई।
सिनेमा हॉल में दोनों ने जाकर पास-पास में कुर्सी लगाई।
आगे बनती कहानी जो सजनों वो बताने के काबिल नहीं है।।2।।
बने फिरते हैं ये दीवानें गायें गलियों में गन्दे गाने।
रहे पिचक गाल पग फिर रहे पर नहीं किसी की माने।
बनी बन्दर शक्ल है जो सजनों वो दिखाने के काबिल नहीं है।।3।।
हुआ फैशन में पागल जवां है किया माता-पिता का दिवाला।
लगे तेल फुलेल बदन पर और अन्दर से पड़ रह काला।
आज फैशन चला है जो सजनों वह चलाने के काबिल नहीं है।।4।।
खाये छोले भटूरे दिन भर नहीं रोटी शाक मन भाता।
खाये रैंट खखार जो मुर्गी उसके अण्डे में ताकत बताता।
आज घी दूध मक्खन को सजनों यह पचाने के काबिल नहीं है।।5।।
ब्रह्मचर्य नष्ट कर डाला कैसा फीका है पड़ रहा चेहरा।
सारे दिन चक्कर चलते हैं सर में ऊठा बैठी में आता अन्धेरा।
दौड़ दण्ड बैठक कसरत को सजनों यह लगाने काबिल नहीं है।।6।।
बडे़ रोबे से प्रॉफेसर आये और कुर्सी के ऊपर विराजे।
झट लड़कों ने बन्द किये हैं कमरे के सभी दरवाजे।
क्री ऐसी पिटाई है सजनों घर जाने के काबिल नहीं है।।7।।
कहां तक मैं सुनाऊँ रे लोगों आज भारत की बिगड़ी कहानी।
सिनेमा और वैश्या घरों में दिल धोळे है लुटती जवानी।
यह भारत में आजादी सजनों टिक जाने के काबिल नहीं है।।8।।
आर्यवीरों होश में आओ इन कॉलेज के गुरुकुल बनाओ।
सारे विश्व के हर घर-घर में तुम वेदों का नाद बजाओ।
‘मेधाव्रत’ समय अब सजनों पछताने के काबिल नहीं है।।9।।
रचनाः- मेरे परम पूज्य गुरु श्री आचार्य मेधाव्रत जी