इतने पतन के बाद भी आज भी जग सारा।
कहता है भारत प्यारा।।
सदीयों तक गर्दिश में जिसका डूबा रहा सितारा।
ये सच हम बनकर रहे चक्रवर्ती सम्राट।
आलस और प्रमाद में खो बैठे सब ठाठ।
फूट अविद्या कलह ने घर के शिर का मुकुट उतारा।।1।।
भारत में महाभारत की ऐसी छिड़ी लड़ाई
दादा से पोता लड़ा भाई से लडे़ भाई
गुरु को चेलों ने बाणों से बीन्ध-बीन्ध कर मारा।।2।।
जर-जर ही होता गया दिन पर दिन ये देश
वैदिक धर्म को छोड़कर बने भिक्षुक आर्य नरेश।
दुर्दिन था जब अशोक ने बोद्धों का मत स्वीकारा।।3।।
तक्षशिला नालन्दा शिक्षा के केन्द्रों पर।
निर्बलता यहां जानकर यवन बने हमलावर।
काम न आया ‘बुद्धं शरणं गच्छामि’ का नारा।।4।।
जम गई जडें विनाश की नीचे गिरे शिखर से
बनते विधर्मी हो गये लालच से कुछ डर से।
सदियों बाद प्रताप शिवा ने गैरत को ललकारा।।5।।
यवन गये अंग्रेज ने ताज और तख्त संभाला
भड़की ऋषि दयानन्द से फिर जौहर की ज्वाला।
आजादी का बिगुल बजा हर फूल बना अंगारा।।6।।
स्वामी की हुंकार से सोते सिंह जगे।
पन्ने के फिर इतिहास के खून से गये रंगे।
बलिदानों ने आजादी को दे दिया जन्म दोबारा।।7।।
अमर ग्रन्थ सत्यार्थ प्रकाश ने खोली सब पोल।
हल चल सी मचने लगी भगे पाखण्डियों के टोल।
कर्मठ संकट के बादल को छिन्न-भिन्न कर टारा।।8।।
श्री बृजपाल जी 'कर्मठ'