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सोमवार, 5 अक्टूबर 2015

इतने पतन के बाद भी-----------|


इतने पतन के बाद भी आज भी जग सारा। 
कहता है भारत प्यारा।।
सदीयों तक गर्दिश में जिसका डूबा रहा सितारा।

ये सच हम बनकर रहे चक्रवर्ती सम्राट।
आलस और प्रमाद में खो बैठे सब ठाठ।
फूट अविद्या कलह ने घर के शिर का मुकुट उतारा।।1।।


भारत में महाभारत की ऐसी छिड़ी लड़ाई
दादा से पोता लड़ा भाई से लडे़ भाई
गुरु को चेलों ने बाणों से बीन्ध-बीन्ध कर मारा।।2।।


जर-जर ही होता गया दिन पर दिन ये देश
वैदिक धर्म को छोड़कर बने भिक्षुक आर्य नरेश।
दुर्दिन था जब अशोक ने बोद्धों का मत स्वीकारा।।3।।

तक्षशिला नालन्दा शिक्षा के केन्द्रों पर।
निर्बलता यहां जानकर यवन बने हमलावर।
काम न आया ‘बुद्धं शरणं गच्छामि’ का नारा।।4।।


जम गई जडें विनाश की नीचे गिरे शिखर से
बनते विधर्मी हो गये लालच से कुछ डर से।
सदियों बाद प्रताप शिवा ने गैरत को ललकारा।।5।।


यवन गये अंग्रेज ने ताज और तख्त संभाला
भड़की ऋषि दयानन्द से फिर जौहर की ज्वाला।
आजादी का बिगुल बजा हर फूल बना अंगारा।।6।।


स्वामी की हुंकार से सोते सिंह जगे।
पन्ने के फिर इतिहास के खून से गये रंगे।
बलिदानों ने आजादी को दे दिया जन्म दोबारा।।7।।

अमर ग्रन्थ सत्यार्थ प्रकाश ने खोली सब पोल।
हल चल सी मचने लगी भगे पाखण्डियों के टोल।
कर्मठ संकट के बादल को छिन्न-भिन्न कर टारा।।8।।

श्री बृजपाल जी 'कर्मठ'

गुरुवार, 20 सितंबर 2012

बलिदान हुए जो देश की खातिर----


बलिदान हुए जो देश की खातिर, देश की खातिर मेरे राष्ट्र की खातिर।
हां जी हां ये उनको नमन है।।टेक।।


मंगलवार, 1 नवंबर 2011

मन समर्पित तन समर्पित


मन समर्पित तन समर्पित और यह जीवन समर्पित
चाहता हूँ देश की धरती तुझे कुछ और भी दूँ




देश तुझको देखकर यह बोध पाया
और मेरे बोध की कोई वजह है
स्वर्ग केवल देवताओं का नहीं है
दानवों की भी यहाँ अपनी जगह है
स्वप्न अर्पित प्रश्न अर्पित आयु का क्षण क्षण समर्पित
चाहता हूँ देश की धरती तुझे कुछ और भी दूँ



रंग इतने रूप इतने यह विविधता
यह असंभव एक या दो तूलियों से
लग रहा है देश ने तुझको पुकारा
मन बरौनी और बीसों उँगलियों से
मान अर्पित गान अर्पित रक्त का कण कण समर्पित
चाहता हूँ देश की धरती तुझे कुछ और भी दूँ



सुत कितने पैदा किए जो तृण भी नहीं थे
और वे भी जो पहाड़ों से बड़े थे
किंतु तेरे मान का जब वक्त आया
पर्वतों के साथ तिनके भी लड़े थे
ये सुमन लो, ये चमन लो, नीड़ का तृण तृण समर्पित
चाहता हूँ देश की धरती तुझे कुछ और भी दूँ

रविवार, 10 अप्रैल 2011

राष्ट्रिय-प्रार्थना

ब्रह्मन ! स्वराष्ट्र में हो द्विज ब्रह्म तेजधारी /
क्षत्रिय महारथी हों अरि-दल विनाशकारी //

होवें दुधारू गोवें पशु अश्व आशुवाही /
आधार राष्ट्र की हों, नारी शुभग सदा ही //

बलवान सभ्य योध्दा यजमान पुत्र होवें /
इच्छानुसार बरसे, पर्जन्य ताप धोवें //

फल-फूल से लदी हों ओषध अमोघ सारी /
हो योगक्षेम-कारी, स्वाधीनता हमारी //

शुक्रवार, 8 अप्रैल 2011

शेर ओ शायरी

शेर ओ शायरी

तलवारों की छाया पर जग की आज़ादी चलती है
इतिहास उधर चल देता है जिस और जवानी चलती है

सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में

उछल रही है मेरी इच्छा कूद रहे मेरे अरमान
फूकूँगा नव जीवन जग में मेरा निश्चय है बलवान

तन समर्पित मन समर्पित और ये जीवन समर्पित
चाहता हूँ देश की माटी तुझे कुछ और भी दूं

हम कोन थे क्या हो गये हैं और क्या होंगे अभी
आओ विचारें आज मिलकर ये समस्याएं सभी