बलिदानी-वीर लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
बलिदानी-वीर लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

सोमवार, 4 जनवरी 2016

हँसते हँसते जिया करें, ये ही नौजवानी होती है--।

हँसते हँसते जिया करें, ये ही नौजवानी होती है।
देश धर्म पर मरें जो उनकी अमर कहानी होती है।।


 
वीर भगतसिंह एक रोज कचहरी बीच बुलाया गया।
हँसना यहाँ पर सख्त मना है यों उसको समझाया गया।
मगर हँसी को रोक सका ना भारी उसे दबाया गया।
इसको फाँसी होनी चाहिए ऐसा हुक्म सुनाया गया।
तौहीन अदालत की करना भारी शैतानी होती है।।1।।
 
जज से बोला भगतसिंह आवे हँसने में आनन्द मुझे।
धधक रही है ज्वाला दिल में कभी बुझाई नहीं बुझे।
सदा शहीदों की जय बुलती कायर कमीने नहीं पुजें।
फाँसी पर आ गई हाँसी तो कहाँ मरण ने जगह तुझे।
फाँसी गोली से मरना वीरों की निशानी होती है।।2।।
 
बैरागी बन्दे की घटना जज साहब तेरे याद नहीं।
सिंडासियों से खाल नौंच ली तन से खून की धार बही।
सरिये करके लाल घुसडे़ तन में और बता क्या कसर रही।
बच्चा करके कत्ल मांस की बोटी मुंह में ठूँस दई।
हंस-हंस के बैरागी कहे मुझे ना परेशानी होती है।।3।।
 
जिसने हंसना सीख लिया वो ना जीवन में रोएगा।
वीर बहादुर मिट सकता है स्वाभिमान ना खोएगा।
झूठा चापलूस मिन्नत कर मुंह का थूक बिलोएगा।
ईश्वर का विश्वासी आर्य सन्मार्ग ही टोहेगा।
नित नई वीरों की गाथा नहीं पुरानी होती है।।4।।
 
देश धर्म पर मिटने वाले वीर हमेशा ढेटे हों।
कभी नहीं मिटते हैं जिन्होंने देश के संकट मेटे हों।
सौभाग्य यही शृंगार यही जो मौत के साथ लपेटे हों।
‘खेमचन्द‘ धन्य-धन्य वो जननी जिसके ऐसे बेटे हों।
सहस बढ़ाए बच्चों का वो मां मर्दानी होती है।।5।।

गुरुवार, 22 अक्टूबर 2015

आजादी की दुल्हन मेरे, कफन की चुनरी ओढ़े-।


आजादी की दुल्हन मेरे, कफन की चुनरी ओढ़े।
आयेगी माँ घर तेरे दिन रह गए थोड़े।।

मौत बनेगी मेरी दुल्हन, है अभिशाप गुलामी का बन्धन।
रंग लाएगी कुर्बानी माँ, हिल जाएगा ब्रिटिश शासन।
जन्म दुबारा लेकर के, जंजीर सितम की तोड़े।।1।।

सच माँ नहीं फांसी का डर है, नाशवान् देह जीव अमर है।
अब तो अथेली के ऊपर सिर है, फिर मरने का हमें क्या डर है।
जालिम के कब तलक सहेंगे, नंगे बदन पर कोडे़।।2।।

देश की खातिर मर जायेंगे, मरकर भी फिर हम आयेंगे।
आकर के दुश्मन के ऊपर, बम और गोली बरसायेंगे।
कसम मादरे हिन्द, फिरंगी का जिन्दा नहीं छोडे़ं।।3।।

हम इतने अंजान नहीं माँ, इस जीने में शान नहीं माँ।
मातृभूमि की रक्षा करना, फर्ज है ये एहसान नहीं माँ।
हक चाहते हैं भीख नही हम, ‘कर्मठ‘ हाथ क्यों जोडे़ं।।4।।

श्री बृजपाल जी कर्मठ द्वारा रचित गीत 
लय-लिखने वाले ने लिख डाले................।

बुधवार, 6 फ़रवरी 2013

सात बजे जिस वक्त सवेरे जब मैं फांसी पाऊंगा



सात बजे जिस वक्त सवेरे जब मैं फांसी पाऊंगा।
फांसी पर चढ़ने से पहले सन्ध्या हवन रचाऊंगा।।

अमर शहीद रामप्रसाद 'बिस्मिल'

आप होंगे सैकड़ों शस्त्रबन्ध मेरी जान अकेली है।
जिसको तुमने मृृत्यु समझा वह तो मेरी सहेली है।
जेलें काटी भूखा मरा मैंने सकल तबाही झेली है।
अन्तिम हथियार था फांसी का वह भी बला सर ले ली है।
फांसी का डर नहीं मुझे मैं ले जन्म दुबार आऊंगा।।1।।

ब्रिटिश साम्राज्य के अन्दर हवन मन्त्र की बोली हो।
घृत सामग्री की आहुति एक-एक पिस्टल की गोली हो।
आजादी के जंग में लड़ें जो नोजवाानों की टोली हो।
गोली से जो खून बहेगा वो होली में रंग रोली हो।
इस होली को तुम ही देखना मैं तो चला ही जाऊंगा।।2।।

कुर्बानी खाली नहीं जाती ये भी आपको याद रहे।
भारत का बच्चा-बच्चा बन बिस्मिल राम प्रसाद रहे।
जब तक गोरे रहे हिन्द में लड़ने का सिंहनाद रहे।
इन गोरों की हकूमत को करके हम बर्बाद रहे।
भारत के कोने-कोने में क्रान्ति की आग लगाऊंगा।।3।।

घृत सामग्री मिली बिस्मिल को सन्ध्या हवन रचाया गया।
वन्दे मातरम् का गाना फांसी से पहले गाया गया।
सात बजे ठीक सवेरे फांसी पर लटकाया गया।
मरकर जिन्दा रहने का यह सबको पाठ पढ़ाया गया।
कहे ‘भीष्म’ सुनने वालों को मैं ज्यादा नहीं रुलाऊंगा।।4।।

गोरखपुर की जेल में बैठा मां को लिखता परवाना---


गोरखपुर की जेल में बैठा मां को लिखता परवाना।
देश धर्म का दीवाना ।।
अमर शहीद राम प्रसाद 'बिस्मिल'


जन्मदात्री जननी मेरी ले अन्तिम प्रणाम मेरा।
जन्म-जन्म तक ना भूलूंगा मैं माता जी अहसान तेरा।
सेवा ना कर सका आपकी यही मेरा है पछताना।।1।।

मेरी मौत का मेरी मात से जब सन्देश सुनाये।
मेरी याद में तेरी आंख से आंसू ना बह जाये।
वतन पर मरने वालों की मां को ना चाहिये घबराना।।2।।

सब माताओं की माता है मेरी भारत माता।
उसकी आजादी की भेंट में चढ़ने को मैं जाता।
जिसको प्यार नहीं माता से उसका अच्छा मर जाना।।3।।

होगा वतन आजाद एक दिन ऐसा भी आयेगा।
स्वर्ण अक्षरों में मां तेरा नाम लिखा जायेगा।
‘खेमसिंह’ भी गायेगा मां बना-बना तेरा गाना।।4।।

बुधवार, 2 नवंबर 2011

खंजर से उड़ा दो चाहे मेरी

खंजर से उड़ा दो चाहे मेरी बोटी-बोटी को।
दूंगा नहीं चोटी को मैं दूंगा नहीं चोटी को।।


सबसे प्यारी चीज देखो हर किसी की जान है।
इस चोटी के लिये मगर जान भी कुर्बान है।
पहिचान है मुझे मैं सब समझूं खरी खोटी को।।1।।

चोटी के बदले में लूं ना दुनिया की जागीर में ।
बांध नहीं सकते तुम मुझको जर की जंजीर में।
हकीर ना में इतना चोटी देके चाहूं रोटी को।।2।।

समझाया हकीकत जो कि हकीकत ही नाम है।
काट दो हकीकत को तुम बस का नहीं काम है।
खाम है खयाल जरा परख ले कसौटी को।।3।।

गर्दन के उतरने पर ही उतरेगा यज्ञोपवीत।
क्योंकि ये हमारी आर्यों की है पुरानी रीत।
भयभीत करना चाहते हो तुम समझ आयु छोटी को।।4।।

शीश काट सकते हो लो काट श्रीमान् मेरा।
डिगा नहीं सकते कभी धर्म से तुम ध्यान मेरा।
बलिदान मेरा पहुंचायेगा ‘वीर’ उच्चकोटि को।।5।।

रचनाः- स्व. श्री वीरेन्द्र जी ‘वीर’

खंजर से उड़ा दो चाहे मेरी बोटी-बोटी को।
दूंगा नहीं चोटी को मैं दूंगा नहीं चोटी को।।


सबसे प्यारी चीज देखो हर किसी की जान है।
इस चोटी के लिये मगर जान भी कुर्बान है।
पहिचान है मुझे मैं सब समझूं खरी खोटी को।।1।।

चोटी के बदले में लूं ना दुनिया की जागीर में ।
बांध नहीं सकते तुम मुझको जर की जंजीर में।
हकीर ना में इतना चोटी देके चाहूं रोटी को।।2।।

समझाया हकीकत जो कि हकीकत ही नाम है।
काट दो हकीकत को तुम बस का नहीं काम है।
खाम है खयाल जरा परख ले कसौटी को।।3।।

गर्दन के उतरने पर ही उतरेगा यज्ञोपवीत।
क्योंकि ये हमारी आर्यों की है पुरानी रीत।
भयभीत करना चाहते हो तुम समझ आयु छोटी को।।4।।

शीश काट सकते हो लो काट श्रीमाान् मेरा।
डिगा नहीं सकते कभी धर्म से तुम ध्यान मेरा।
बलिदान मेरा पहुंचायेगा ‘वीर’ उच्चकोटि को।।5।।

रचनाः- स्व. श्री वीरेन्द्र जी ‘वीर’