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मंगलवार, 20 अक्टूबर 2015

ये सारी बीमारी है आर्यों के राज बिना--।

ये सारी बीमारी है आर्यों के राज बिना।

आर्यों का राज हो तो सच्चे न्यायकारी हो।
मनु का कानून मानें दुष्टों को दण्ड भारी हो।
यूं डाकू चोर जुआरी-हैं आर्यों के राज बिना।।1।।

गुरुकुलों में शिक्षा पाएं पढ़कर वेदाचारी हों।
ब्रह्मचर्य का पालन करें बलकारी बलधारी हों।
ये नामर्दी सारी हैं आर्यों के राज बिना।।2।।

सन्ध्या-हवन करें प्रतिदिन सच्चे ओम् पुजारी हों।
दूध-दही-घी-मक्खन खाएं पक्के परोपकारी हों।
ये शराबी मांसाहारी हैं आर्यों के राज बिना।।3।।

गोमाता के भक्त बनें यहाँ दिलीप कृष्ण मुरारी हों।
महाराजा खुद गाय चरावें नदी दूध की जारी हों।
यहाँ चलती रोज कटारी हैं आर्यों के राज बिना।।4।।

एक ईश्वर के भक्त बनें सब सारी दूर खवारी हों।
मजहबी झगड़े सब मिट जावें मोक्ष के अधिकारी हों।
ये मोडे मठधारी हैं आर्यों के राज बिना।।5।।

शुद्ध भावों से दान करें ऐसे गृहस्थाचारी हों।
ऋषि-मुनियों का सत्कार हो पण्डित वेदाचारी हों।
ये पण्डे पोप-पुजारी हैं आर्यों के राज बिना।।6।।

‘ईश्वरसिंह’ की कथा भजन हों रंगत न्यारी-न्यारी हों।
नित्यानन्द प्रचार करे समझदार नर-नारी हों।
ये नकली प्रचारी हैं आर्यों के राज बिना।।7।।

गुरुवार, 15 अक्टूबर 2015

ओ सुन ले शराबी क्यों करता खराबी ।


ओ सुन ले शराबी क्यों करता खराबी।
यूं दारू पीने में तो तेरी खेर नहीं।

छोटे-छोटे बालक तेरे उनसे प्यार नहीं है।
फिरे अवारा गलियों में जैसे घरबार नहीं है।
तुम घर को संभालो उन बालकों को पालो।
अरे बच्चों से तो तेरा कोई बैर नहीं।।1।।

धरती जेवर बेच दिए और इज्जत सारी खोई।
नहीं उधार पैसा मिलता आटा दे ना कोई।
तू मेरी मान जाता ना रोता दुःख पाता।
मैं तेरा ही तो भाई हूँ कोई गैर नहीं।।2।।

कभी नशे में चलते-चलते गलियों में पड़ता है।
कभी-कभी प्रचार में आकेे ‘रामरख‘ से लड़ता है।
जब होती है पिटाई फिर नानी याद आई।
धरती पर तेरा टिकता कोई पैर नहीं।।3।।



लय-ये पर्दा हटा दो जरा..................।

इस तरह बनेगा स्वर्ग सभी संसार-----|


इस तरह बनेगा स्वर्ग सभी संसार रे.....।

सबसे पहले आर्य नेता संसद में भिजवाये जाएं।
भ्रष्टाचारी खोज-खोज जहाजों में बिठाए जाएं।
ले जाकर समुन्दर बीच बांधकर डुबाए जाएं।
मद्य वस्तुओं के ठेके बन्द सब कराए जाएं।
पीते जो शराब उल्टे पेड़ों के लटकाए जाएं।
मांस खानेवाले गरम तेल में पकाए जाएं।
पके हुए तन के लगभग टुकड़े सौ करवाए जाएं।
चील काग कुत्ते आदि जीवों को खिलाए जाएं।
सुलफा सट्टेबाजों पर भी पड़े गजब की मार रे।।1।।

करते जो ब्लैक गरम खम्भों के बंधवाए जाएं।
गिनकर के पचास कोडे़ पीठ पर लगवाए जाएं।
जेब कतरे चोर लुटेरे चीरकर सुखाए जाएं।
लुच्चे गुण्डे बेईमान गोली से उड़ाए जाएं।
चीजों में मिलावट करें जेल में भिजवाए जाएं।
डांडी मारे कमती तोलें खोद के गडवाए जाएं।
झूठी जो गवाही देते कोल्हू में पिलवाए जाएं।
पंच जो अन्याय करते होली में जलाए जाएं।
चुगलखोर हों खत्म करें जो दिन-रात बिगार रे।।2।।

डाकू और बागी के पांव घुटनों से कटवाए जाएं।
मुस्टण्डे भिखारी सब काम पे लगवाए जाएं।
कामी नर-नारी आधे धरती में गडवाए जाएं।
रिश्वतखोर लोगों के तन आरे से कटवाए जाएं।
नंगे तन पर बेंत मारकर कुत्ते पीछे छुड़वाए जाएं।
धोखेबाज लफंगे प्लेटफार्म पे ले जाए जाएं।
आवे जब तूफानमेल आगे सब गिराए जाएं।
सांगी और नचकैयों का करे कोई नहीं सत्कार रे।।3।।

जुआरी मटकेबाज हवालात में पहुंचाए जाएं।
बीड़ी पीनेवालों के मुंह इंजन से बंधवाए जाएं।
हुक्का पीनेवालों के मुंह में खूंटे ठुकवाए जाएं।
भांग पीनेवालों पक्के रोड पे सुलवाए जाएं।
मालभरे ठेले उनपे सारे दिन घुमाए जाएं।
बूचड़खाने तोड़ प्राण गऊओं के बचाए जाएं।
अलग-अलग लड़का-लड़की गुरुकुल में पढ़ाए जाएं।
कहे ‘नरदेव’ सुखी हों फिर दुनिया के नर-नार रे।।4।।

सोमवार, 18 मार्च 2013

गर कहीं लग जाए मदिरा का चस्का-----


गर कहीं लग जाए मदिरा का चस्का।
फिर तो खुदा खैर करे, किसी के न बस का।।



पीना इसको छोड़ दे, कहना मेरा मान ले।
मदिरा की ये प्यालियां, विष की प्याली जान ले।
विष भरी प्यालियां जो पिवोगे जनाब,
दुनियां मंे चंद रोज जिवोगे जनाब।
जिन्दगी का खेल समझो, शेष दस दिन का।।१।।

राजा-महाराजा गए, चली गई राजधानियां।
पी-पी प्याले मर गए, मिलती नहीं निशानियां।
बादशाह दीवान वो नवाब कहां हैं,
उनके वो नखरे ख्वाब कहां हैं ?
देखलो करिश्मा यारों की हवश का।।२।।

गली-गली में नाचते, लड़के पी-पी प्यालियां।
बिगड़ रही संतान सबकी, लोग बजाएं तालियां।
नाचती कुमारियां कुमार नाचते,
शादियों में बंदडे़ के यार नाचते।
एक बूढ़ा भी नाच रहा, सत्तर बरस का।।३।।

मन्दिर में भगवान् की, पूजा है ना पाठ है।
सूने-सूने से सब पडे़, पर मयखाने में ठाठ है।
देखले ‘बेमोल’ कैसा ढंग हो गया,
वेद का सिद्धान्त सारा भंग हो गया।
मंदिरों में भोग लगे, भांग और चरस का।।४।।

रचना-स्व. श्री लक्ष्मण सिंह ‘बेमोल’

(लय-गोरे-गोरे मुखड़े पे........)