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गुरुवार, 9 मई 2013

वह थोड़ा सा कर्महीन है, जिसके घर सन्तान नहीं--



वह थोड़ा सा कर्महीन है, जिसके घर सन्तान नहीं।
वह पूरा बदकिस्मत समझो याद जिसे भगवान् नहीं।।

नालायक सन्तान से तो बेहतर है बे औलाद रहे।
महल से अच्छी है वो झोंपड़ी, जो सुख से आबाद रहे।
दौलत वह किस काम की जिसमें परमेश्वर ना याद रहे।
धनी भी वह क्या धनी है, जिसको निर्धन का कुछ ध्यान नहीं।।१।।

सूरत सीरत प्यार मौहब्बत, किसी की यह जागीर नहीं।
 जिसकी इज्जत है जग में कोई उससे बड़ा अमीर नहीं।
सूना है वह मन जिसमें मजलूमों की तस्वीर नहीं।
बन्दा वह क्या बन्दा जिसको बन्दे की पहचान नहीं।।२।।

कहता कुछ और करता कुछ है, वह कोई जबान नहीं।
आदमी वह बेजान है जिसकी, किसी बात में जान नहीं।
बेईमान कहलाये वो जिसकी, किसी बात में जान नहीं।।३।।

जिसके पास महल और बच्चे, दौलत ये सामान नहीं।
थोड़ा सा वह भाग्यहीन  है, ज्यादा उसका नुकसान नहीं।
देश-भक्ति के बिना ‘नत्थासिंह’ बशर की कोई शान नहीं।
होते हुए में भी दान करे ना, वह भी कम नादान नहीं।।४।।


सोमवार, 22 अप्रैल 2013

ये नर तन तुम्हें निरोग मिला, सत्संग का भी योग मिला



ये नर तन तुम्हें निरोग मिला, सत्संग का भी योग मिला।
फिर भी प्रभु कृपा अनुभव करके यदि भवसागर तुम तर न सके।
फिर मत कहना कुछ कर न सके।।

तुम सत्य तत्त्व ज्ञानी होकर, तुम सहधर्मी ध्यानी होकर।
तुम सरल निरभिमानी होकर, कामना विमुक्त विचर न सके।
फिर मत कहना कुछ कर न सके।।१।।

जग में जो कुछ भी पाओगे, सब यही छोड़कर जाओगे।
पछताओगे आगे यदि तुम अपना पुण्यों से जीवन भर न सके।
फिर मत कहना कुछ कर न सके।।२।।

जो सुख सम्पत्ति में भूल रहे, वो वैभव मद में फूल रहे।
उनसे फिर पाप डरेंगे क्यों, जो परमेश्वर से डर न सके।
फिर मत कहना कुछ कर न सके।।३।।

जब अन्त समय आ जायेगा, तब तुम से क्या बन पायेगा।
यदि समय शक्ति के रहते ही आचार-विचार सुधर न सके।
फिर मत कहना कुछ कर न सके।।४।।

होता जब तक न सफल जीवन, है भार रूप स बतन-मन-धन।
यदि ‘पथिक’ प्रेम पथ पर चलकर अपना या पर दुःख हर न सके।
फिर मत कहना कुछ कर न सके।।५।।

शुक्रवार, 8 मार्च 2013

भरोसा कर तू ईश्वर पर तुझे धोखा नहीं होगा--


भरोसा कर तू ईश्वर पर तुझे धोखा नहीं होगा।
यह जीवन बीत जायेगा तुझे रोना नहीं होगा।।



कभी सुख है कभी दुख है, यह जीवन धूप-छाया है।
हँसी में ही बिता डालो, बिताना ही यह माया है।।१।।

जो सुख आवे तो हंस लेना, जो दुःख आवे तो सह लेना।
न कहना कुछ कभी जग से, प्रभु से ही तू कह लेना।।२।।

यह कुछ भी तो नहीं जग में, तेरे बस कर्म की माया।
तू खुद ही धूप में बैठा लखे निज रूप की छाया।।३।।

कहां पे था, कहां तू था, कभी तो सोच ए बन्दे !
झुकाकर शीश को कह दे, प्रभु वन्दे ! प्रभु वन्दे !!४!!

मंगलवार, 22 मई 2012

पीपल के पत्ते के ऊपर

पीपल के पत्ते के ऊपर तेरा ठोर ठिकाना है !

क्या जाने किस वक्त टूट कर मिटटी में मिल जाना है !

पका हुआ खरबूजा जैसे स्वयं छोड़ दे डाली को !
ऐसे ही तुम छोड़ के जाना इस दुनिया मतवाली को !
मृत्यु का बंधन कट जावे अमृत पद को पाना है ! क्या जाने किस वक्त .....

उत्तम मध्यम अधम पाश को परमेश्वर ढीला कर दे !
व्रत नियमों के परिपालन से दामन में खुशियां भर दे !
हो जावें अपराध रहित नर जीवन शुद्ध बनाना है ! क्या जाने किस वक्त .......

हंसना गाना मौज मनाना खाना पीना सोना है !
नियत समय तक इन सबसे सम्बन्ध सभी का होना है !
अंत काल में महागाल में ही हर हाल समाना है ! क्या जाने किस वक्त....

यह काया तो भस्म बनेगी आखिर इसका अंत यही है !
अग्नि वायु जल सभी छोड़ दें वेद में सच्ची बात कही है !
‘पथिक’ सिमर ले ओम् नाम को गर मीठा फल पाना है ! क्या जाने किस वक्त .......

रविवार, 4 मार्च 2012

तन्मे मनः शिवसंकल्प मस्तु ।


तन्मे मनः शिवसंकल्प मस्तु ।




कभी सोचा है क्यों इन्सां के ईमान बदलते रहते हैं । 


जब मन का लक्ष्य बदलता है इन्सान बदलते रहते हैं ।

हम स्वास्थ के लिए खाते थे तन को बलवान बनाते थे । 

अब स्वाद के लिए खाते हैं पकवान बदलते रहते है ।1।

गर्मी सर्दी से बचाने को हम पहनते थे तन पर कपङा । 

जब तन को सजाने को पहना परिधान बदलते रहते है ।2।

आत्मा का घर है ये नरतन इस तन के लिए बन गया भवन ।

आत्मा का जिनको नहीं ज्ञान वो मकान बदलते रहते हैं ।3।

सत्य है क्या और असत्य है क्या सत्संग में सिखाया करते थे । 

अब भक्तों को खुश करने को व्याख्यान बदलते रहते है ।4।

हो गये पुराने बृह्मा विष्णु शिव गणेश आदि सारे । 

इस लिए आज मन्दिर अन्दर भगवान बदलते रहते हैं ।5।

असली नकली का नहीं ज्ञान सस्ता मिल जाये यही ध्यान ।

ऐसे ग्राहक और खरीदार दुकान बदलते रहते हैं ।6।

प्रजा को सुखी बनाने को विधान बनाया ऋषियों ने । 

अब कुर्सी बचाने को नेता संविधान बदलते रहते हैं ।7।

जिनका मन है सच्चाई पर जायेगें नहीं बुराई पर । 

नरेश दत्त उनके आगे तूफान बदलते रहते हैं ।8।

शुक्रवार, 4 नवंबर 2011

ओम् नाम का सुमिरन करले कर


ओम् नाम का सुमिरन करले कर दे भव से पार तुझे।
कह लिया कितनी बार तुझे।।स्थाई।।

जिस नगरी में वास तेरा यह ठग चोरों की बस्ती है।
लुट जाते हैं बड़े-बड़े यहां फिर तेरी क्या हस्ती है।
जिसको अपना समझ रहा ये धोखा दे संसार तुझे।।1।।

हाथ पकड़कर गली-गली जो मित्र तुम्हारे डोल रहे।
कोयल जैसी मीठी वाणी कदम-कदम पर बोल रहे।
बनी के साथी बिगड़ी में ना गले लगाये यार तुझे।।2।।

दौलत का दीवाना बनकर धर्म कर्म सब भूल रहा।
पाप पुण्य कुछ पता नहीं क्यों नींद नशे में टूल रहा।
ईश्वर को भी नहीं जानता ऐसा चढ़ा खुमार तेरे।।3।।

तुझसे पहले गये बहुत से कितना धन ले साथ गये।
‘लक्ष्मणसिंह बेमोल’ कहे वो सारे खाली हाथ गये।
तू भी खाली हाथ चलेगा देखेंगे नर नार तुझे।।4।।

रचना- स्व. श्री लक्ष्मण सिंह जी 'बेमोल'

सोमवार, 8 अगस्त 2011

जब तेरी डोली

जब तेरी डोली निकाली जाएगी 
बिन मुहूर्त के उठाली जाएगी



जर सिकंदर का यहाँ पर रह गया
मरते दम लुकमान भी यह कह गया
ये घड़ी हरगिज  न टाली जाएगी १ 

उन हकीमों से ये पूछो बोलकर
दावा करते थे किताबें खोलकर 
यह दवा हरगिज न खाली जाएगी २ 

क्यों गुलों पर हो रहे बुलबुल निसार
पीछे माली है खड़ा ख़बरदार 
मारकर गोली गिराली जाएगी ३ 

ये मुसाफिर क्यों पसरता है यहाँ
यह किराये का मिला तुझको मकाँ
कोठारी खाली करली जाएगी 4 

धर्मराज जब लेगा तेरा हिसाब
फिर वहाँ पर क्या देगा तू जवाब
जब बही तेरी निकाली जाएगी

शनिवार, 30 जुलाई 2011

जीवन ख़त्म हुआ तो

जीवन ख़त्म हुआ तो जीने का ढंग आया.
जब शमा बुझ गई तो महफ़िल में रंग आया..

मन की मशीनरी ने, जब ठीक चलना सीखा.
तब बूढ़े तन के हर इक पुर्जे में जंग आया..

फुरशत के वक्त में न सिमरन का वक्त निकला.
उस वक्त-वक्त माँगा जब वक्त तंग आया..

आयु ने नत्था सिंह जब, हथियार फैंक डाले.
यमराज फोज लेकर, करने को जंग आया..

रचना:- श्री नत्था सिंह 

बुधवार, 27 जुलाई 2011

जिस दिन घमंड अपने

जिस दिन घमंड अपने सर से उतार देगा,
उस दिन तुझे विधाता अनमोल प्यार देगा..

उसके समान जग में दाता न और कोई,
देने पे जब वो आये तो बेशुमार देगा..

मन वचन कर्म उसकी आज्ञा अनुसार करले ,
वो तो फ़िदा है तुझपे सर्वस्व वार देगा ..

भगवान छोड़ साथी इन्सान को बनाया ,
सुख में जो साथ देता दुख में भी साथ देगा..

अंतिम समय कहा की नेकी कमा लूं लेकिन,
उस पल 'पथिक' न कोई जीवन उधार देगा..

रचना:-- श्री सत्यपाल जी पथिक

शनिवार, 9 अप्रैल 2011

मानव तू अगर चाहे

मानव तू अगर चाहे दुनिया को हरा देना
पर ईश्वर के दर पर सर अपना झुका देना

राजी हो प्रभु जिसमें वह काम सही होगा
भगवान जो चाहेगा दुनिया में वही होगा
उसे अपना बनाकर के उलझन को मिटा लेना

रक्षक है अनाथों का दुखियों का सहारा है
भव पर किया जिसने उसको ही पुकारा है
पल भर के उसको दिल से न भुला देना