तन्मे मनः शिवसंकल्प मस्तु ।
कभी सोचा है क्यों इन्सां के ईमान बदलते रहते हैं ।
जब मन का लक्ष्य बदलता है इन्सान बदलते रहते हैं ।
हम स्वास्थ के लिए खाते थे तन को बलवान बनाते थे ।
अब स्वाद के लिए खाते हैं पकवान बदलते रहते है ।1।
गर्मी सर्दी से बचाने को हम पहनते थे तन पर कपङा ।
जब तन को सजाने को पहना परिधान बदलते रहते है ।2।
आत्मा का घर है ये नरतन इस तन के लिए बन गया भवन ।
आत्मा का जिनको नहीं ज्ञान वो मकान बदलते रहते हैं ।3।
सत्य है क्या और असत्य है क्या सत्संग में सिखाया करते थे ।
अब भक्तों को खुश करने को व्याख्यान बदलते रहते है ।4।
हो गये पुराने बृह्मा विष्णु शिव गणेश आदि सारे ।
इस लिए आज मन्दिर अन्दर भगवान बदलते रहते हैं ।5।
असली नकली का नहीं ज्ञान सस्ता मिल जाये यही ध्यान ।
ऐसे ग्राहक और खरीदार दुकान बदलते रहते हैं ।6।
प्रजा को सुखी बनाने को विधान बनाया ऋषियों ने ।
अब कुर्सी बचाने को नेता संविधान बदलते रहते हैं ।7।
जिनका मन है सच्चाई पर जायेगें नहीं बुराई पर ।
नरेश दत्त उनके आगे तूफान बदलते रहते हैं ।8।
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