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शुक्रवार, 18 मार्च 2016

मित्रों होली ऐसे मनाना,

मित्रों होली ऐसे मनाना, 
आर्य ग्रन्थों में लिखा हुआ ये सुगन्धित पवन बनाना।

योगिराज श्री कृष्ण जी एवं
महारानी रुक्मिणी जी यज्ञ करते हुए । 
ऋतुओं का परिवर्तन होता, रोग बहुत आते हैं।
बुद्धिजीवी यज्ञों द्वारा रोगों को भगाते हैं।
तुम भी यज्ञ रचाना, मित्रों होली ऐसे मनाना।।1।।

पकी फली होले सब भून-भून खाते हैं।
यज्ञों के अवशेष सारे तन पे लगाते हैं।
सब बाँट-बाँट कर खाना, मित्रों होली ऐसे मनाना।।2।।

गंदी रीत छोड़ सारी अच्छी को अपनायेंगे।
होली की महत्ता एक दूजे को बतलायेंगे।
सब मिलकर खुशी मनाना, मित्रों होली ऐसे मनाना।।3।।

रंगों का त्यौहार रंग प्यार के बिखेरेंगे।
कूड़ा कचरा कीचड़ नहीं किसी पे भी गेरेंगे।
ना उल्टी रीत चलाना, मित्रों होली ऐसे मनाना।।4।।

ऋषियों का संदेश सारे जग को सुनायेंगे।
सबसे सुन्दर राष्ट्र अपने राष्ट्र को बनायेंगे।
सुने ‘आर्यवीर‘ का गाना, मित्रों होली ऐसे मनाना।।5।।

रचना संजीव 'आर्यवीर'

सोमवार, 4 जनवरी 2016

बनो आर्य खुद और जहाँ को बना दो--

बनो आर्य खुद और जहाँ को बना दो।
जो कहते हो दुनिया को करके दिखा दो।।



प्रभु एक है वेद है उसकी वाणी।
ये पैगाम स्वामी का घर-घर सुना दो।।1।।

न ऋषियों की तहजीब मिट जाए वीरों।
मिटाए जो इसको उन्हें तुम मिटा दो।।2।।

हंसाओ न दुनिया को लड़-लड़ के बाहम।
समाजों में उल्फत की गंगा बहादो।।3।।

जहालत की दीवारें अब तक खड़ी हैं।
उठो और इन्हें देखो जड़ से हिला दो।।4।।

भटकते बहुत पिशना लब फिर रहे हैं।
‘मुसाफिर‘ उन्हें जामे बहदत पिला दो।।5।।

सोमवार, 19 अक्टूबर 2015

वो मुर्दा है जो स्वाभिमानी नहीं है------।


वो मुर्दा है जो स्वाभिमानी नहीं है।
जिस इन्सां की आँखों में पानी नहीं है।।

विधाता मेरी कौम को हो गया क्या। 
कि जिन्दा तो है पर जिन्दगानी नहीं है।।1।।

बुजुर्गों हकीकत बयाँ कर रहा हूँ।
ये किस्सा नहीं और कहानी नहीं है।।2।।

लगाते हैं हर एक की जय के नारे।
किसी की कोई बात मानी नहीं है।।3।।

उठे तो उठे कैसे वो कौम जिसके।
जवानों में जोशे जवानी नहीं है।।4।।

उठेंगे तो तूफान बनकर उठेंगे।
अभी हमने उठने की ठानी नहीं है।।5।।

अरे गाफिलों एक हो जाओ मिलकर।
अगर मार गैरों की खानी नहीं है।।6।।

हैं हिन्दू भी मुस्लिम भी हिन्दोस्ताँ में।
मगर कोई हिन्दुस्तानी नहीं है।।7।।

‘मुसाफिर‘ न कर मरने जीने का खटका।
अजर और अमर है तू फानी नहीं है।।8।।

गुरुवार, 15 अक्टूबर 2015

मां-बाप कहाने वालों औलाद बनाना सीख लो ।


ओ मां-बाप कहाने वालों औलाद बनाना सीख लो।

बच्चा पैदा तो जग में हर एक जानवर करता है।
खाता पीता सो जाता और डरता जीता मरता है।
दुनिया में देखो भालो औलाद बनाना सीख लो।।1।।

यही काम किए तो जग में पशु मनुष्य में भेद नहीं।
वे नर पशुओं से गिर जाते जो पढे़ शास्त्र-वेद नहीं।
यूं जन्म लजानेवालों औलाद बनाना सीख लो।।2।।

माता शत्रु पिता है वैरी जो औलाद पढ़ावे ना।
जैसे बगुला हंस-सभा में बैठ के शोभा पावे ना।
यूं शर्मानेवालों औलाद बनाना सीख लो।।3।।

समझो जहर पिलाता है जो प्यार करे संतान को।
लाड प्यार से निर्भय होकर देते दुःख जहान को।
यूं जहर पिलानेवालों औलाद बनाना सीख लो।।4।।

हुक्का सिगरेट बीड़ी पीते कहीं पशु चरवाते हो।
क्रिकेट, टी.वी. दिखा-दिखाकर इन्हें बदमाश बनाते हो।
पीछे पछतानेवालों औलाद बनाना सीख लो।।5।।

क्या दाता क्या शूरवीर क्या देशभक्त सन्तान करो।
कायर क्रूर कुकर्मी जनकर दुनिया का न नाज बिरान करो।
तादाद बढ़ानेवालों औलाद बनाना सीख लो।।6।।

बचपन में शादी कर-करके मत इनको कमजोर करो।
‘नित्यानन्द’ कहे पछताओगे जल्दी इस पर गौर करो।
ओ सुनने-सुनानेवालों औलाद बनाना सीख लो।।7।।

सोमवार, 18 मार्च 2013

जय बीड़ी मैया, बोल जय बीड़ी मैया--


जय बीड़ी मैया, बोल जय बीड़ी मैया।
तुम को निशि-दिन ध्यावत, भाभी और भैया।।



जो तुमको सुलगावे, खर्च बढे़ धन का। देवी खर्च..।
दुःख संकट घर आवे, रक्त मिटे तन का।।१।।

तुम हो एक शनिश्चर, जग की धूम्रपति।
किस विध बचूं हाय मैं, तू घर-घर मिलती।।२।।

तम्बू, बिछौना, बिस्तर, तू छलनी करती।
खेत और खलिहानों को, साफ तू ही करती।।३।।

तू व्यापक मन्दिर-मस्जिद, क्या बैठक खटिया।
विद्यालय शौचालय, क्या चूल्हा-चकिया।।४।।

कितने लोगों की तुम हो, औषधि और पट्टी।
जब मुंह में लग जावे, तब आवे टट्टी।।५।।

सोमवार, 4 फ़रवरी 2013

हो समय ने फिर ललकारा है--


हो समय ने फिर ललकारा है।
देश धर्म द्रोहियों से लड़ना हमारा नारा है।।स्थाई।।

हम भारत के वासी हमारा राज प्रजातन्त्र है।
वेदों के उपासक हमारी संस्कृति पवित्रा है।
खुद जीयें और जीने दें ऐसा हमारा चरित्र है।
कभी इन्सानियत से हमने रिश्ता तोड़ा नहीं।
सच्चाई कि रास्ते से हमने मुंह मोड़ा नहीं।
जिसने हमको छेड़ा पहले उसको हमने छोड़ा नहीं।
हो जानता यह जग सारा है
बड़े-बड़े खूंखारों का हमने मुंह मारा है।।1।।

देश की अखण्डता को खण्डित नहीं होने देंगे।
आपस में हम फूट के बीज नहीं बोने देंगे।
आजादी रूपी दौलत को हरगिज नहीं खोने देंगे।
 जो करते हैं बकवास आज गैरों के इशारों पर।
लानत है ऐसे देश द्रोही गद्दारों पर ।
करें न विश्वास कभी भूलकर मक्कारों पर।
 हो हुआ दिल दुःखी हमारा है।
ईंट का जवाब देंगे पत्थर से और न चारा है।।2।।

गर पहले हमारे नेता ऐसी गलती खाते ना।
तो आज के ये दिन कभी देखने में आते ना।
मुट्ठी भर ये लोग कभी शोर यों मचाते ना।
हमने इनकी नीयत को अच्छी तरह पहचाना है।
चण्डीगढ़ का फैसला तो झूठा सा बहाना है।
सिर्फ इनका एक खालिस्तान का निशाना है।
हो खास गैरों का इशारा है।
हो खुलमखुल्ला पापिस्तान ये नाच नचारा है।।3।।

देश को जरूरत है मजबूत कर्णधारों की।
देश को जरूरत है पटेल से सरदारों की।
देश को जरूरत नहीं इन फिल्मी सितारों की।
कुर्सी के पुजारी अपनी कुर्सी को बचाते रहेंगे।
ये कर दिया वो कर दिया शोर यों मचाते रहेंगे।
उधर बेगुनाहों का खून वो बहाते रहेंगे।
हो बड़ा ये खतरा भारा है
कहे ‘खेमसिंह’ कहीं देश का ना हो जाये बटवारा है।।4।।

शुक्रवार, 2 नवंबर 2012

उठो देश के वीर जवानों, जग को आर्य बनाना है---


उठो देश के वीर जवानों, जग को आर्य बनाना है।
कृण्वन्तो विश्वमार्यमका वैदिक नाद गुंजाना है।।टेक।।




आर्य समाज है माता अपनी, दयानन्द पिता हमारा है।
मात-पिता की आज्ञापालन करना फर्ज हमारा है।
दिया है जीवन पावन हमको, इसका कर्ज चुकाना है।।01।।

आने वाले तूफानों से, आर्यवीरों लड़ना है।
हाथ में लेकर ओम् पताका, निशिदिन आगे बढ़ना है।
वेद वाणी से नवयुवकों का सोया साहस जगाना है।।02।।

आर्यवीर दल देश का रक्षक, इतिहास गवाही देता है।
देव, पितृ और ऋषि के ऋण को, कंधों ऊपर लेता है।
संस्कृति-रक्षा, शक्ति-संचय, सेवा-भाव बढ़ाना है।।03।।

आर्यावर्त ये भारत अपना, जग में रोशन नाम करें।
संकट पड़े कभी जो इस पर, जीवन भी कुर्बान करें।
आर्यवीर दल की समां का, ‘‘संजीव’’ बना परवाना है।।04।।



आर्यवीर संजीव आर्य 
मुख्य-संरक्षक 
गुरुकुल कुरुक्षेत्र 

बुधवार, 2 नवंबर 2011

ऐसी बिगड़ी है शिक्षा वतन की--


ऐसी बिगड़ी है शिक्षा वतन की जो पढ़ाने के काबिल नहीं है।
नैया मझधार भारत की सजनों पार जाने के काबिल नहीं है।।

स्कूल कॉलेज में कैसी भारी लगी अग्नि है देती दिखाई।
दिन धोळे में आज रही जा अपने प्राणों से प्यारी जलाई।
सारे भारत की सन्तति सजनों  जो जलाने के काबिल नहीं है।।1।।

करे कॉलेज में सिस्टर पढ़ाई और संग में चचेरा भाई।
सिनेमा हॉल में दोनों ने जाकर पास-पास में कुर्सी लगाई।
आगे बनती कहानी जो सजनों वो बताने के काबिल नहीं है।।2।।

बने फिरते हैं ये दीवानें गायें गलियों में गन्दे गाने।
रहे पिचक गाल पग फिर रहे पर नहीं किसी की माने।
बनी बन्दर शक्ल है जो सजनों वो दिखाने के काबिल नहीं है।।3।।

हुआ फैशन में पागल जवां है किया माता-पिता का दिवाला।
लगे तेल फुलेल बदन पर और अन्दर से पड़ रह काला।
आज फैशन चला है जो सजनों वह चलाने के काबिल नहीं है।।4।।

खाये छोले भटूरे दिन भर नहीं रोटी शाक मन भाता।
खाये रैंट खखार जो मुर्गी उसके अण्डे में ताकत बताता।
आज घी दूध मक्खन को सजनों यह पचाने के काबिल नहीं है।।5।।

ब्रह्मचर्य नष्ट कर डाला कैसा फीका है पड़ रहा चेहरा।
सारे दिन चक्कर चलते हैं सर में ऊठा बैठी में आता अन्धेरा।
दौड़ दण्ड बैठक कसरत को सजनों यह लगाने काबिल नहीं है।।6।।

बडे़ रोबे से प्रॉफेसर आये और कुर्सी के ऊपर विराजे।
झट लड़कों ने बन्द किये हैं कमरे के सभी दरवाजे।
क्री ऐसी पिटाई है सजनों घर जाने के काबिल नहीं है।।7।।

कहां तक मैं सुनाऊँ रे लोगों आज भारत की बिगड़ी कहानी।
सिनेमा और वैश्या घरों में दिल धोळे है लुटती जवानी।
यह भारत में आजादी सजनों टिक जाने के काबिल नहीं है।।8।।

आर्यवीरों होश में आओ इन कॉलेज के गुरुकुल बनाओ।
सारे विश्व के हर घर-घर में तुम वेदों का नाद बजाओ।
‘मेधाव्रत’ समय अब सजनों पछताने के काबिल नहीं है।।9।।

रचनाः- मेरे परम पूज्य गुरु श्री आचार्य मेधाव्रत जी

मंगलवार, 1 नवंबर 2011

विश्वासों के दीप जलाकर--


विश्वासों के दीप जलाकर युग ने तुम्हें पुकारा।
सूर्य चन्द्र सा जग में आर्यों चमके भाल तुम्हारा।।


सदियां बीत गई कितनी ही छाया घोर अन्धेरा।
पल-पल बढ़ता ही जाता है, महानाश का घेरा।
जागो मेरे राम सनातन, संस्कृति को जीवन दो।
जागो कृष्णचन्द्र योगेश्वर भारत का हर जन हो।
जागो शंकर तोड़ दो जग के भव बन्धन की कारा।।1।।

अनाचार का शीश काटने, परशुराम अब जागो।
जागो भामाशाह राष्ट्र के हित में सब कुछ त्यागो।
हरिश्चन्द्र जागो असत्य की छल की रोको आंधी।
राजनीति का छद्म छुड़ाने, जागो मेरे साथी।
टूटी है पतवार दयानन्द ऋषिवर बनो सहारा।।2।।

राणा सांगा जगो शत्रु से रणकर शौर्य दिखाओ।
पवन पुत्र जग पड़ो लोभ लंका को आग लगाओ।
जोगो मेरे चिर अतीत की निष्ठाओं  सब जागो।
दो जग को प्रकाश का नूतन दान नींद अब त्यागो।
जग में शान्ति प्रेम बरसाओ बन सुरसरि की धारा।।3।।

रविवार, 30 अक्टूबर 2011

सुनलो समय की पुकार--


सुनलो समय की पुकार अब मत धोखे में आना देशवासियों।।टेक।।


सदियों में आया मौका हाथ में तुम्हारे फिर आ ना सकेगा।
अब भी न जागे तो दुनियां में कोई तुमको जगा ना सकेगा।
कर दो यह दूर खुमार।।1।।

ठोकर को खाके यदि हमेशा को संभल जाए फिर भी है अच्छा।
सवेरे का खोया हुआ शाम को घर लौट आये फिर भी है अच्छा।
दुश्मन हुआ संसार ।।2।।

अपने पराये की पहचाने करके अब तुम अपने घर को संभालो।
भाई हैं तुम्हारे जिनको समझते हो न्यारे अपनी छाती के लगालो।
संगठित बनालो परिवार।।3।।

खडे़ हैं विधर्मी अब तो तुम्हारे को लूटने को लाल और ललना।
‘शोभाराम प्रेमी’ मेरे भाई पथ से तुम ना विचलना।
कठिन परीक्षा है इस बार।।4।।

रचना- श्रीमान् आर्योपदेशक शोभाराम जी ‘प्रेमी’

शनिवार, 29 अक्टूबर 2011

जवानों जवानी में चलना --


जवानों जवानी में चलना सम्भल के।
आती नहीं ये दुबारा निकल के।।टेक।।
कठिन यह जवानी की मंजिल है प्यारों।
कभी लड़खड़ा जाओ कुछ दूर चलके।।1।।

विषयरूपी रहजन अनेकों मिलेंगे।
खबरदार ! कोई न ले जाए छल के।।2।।

सुधर जाये परलोक जिससे यतन कर।
जब आएगी मृत्यु न जाएगी टल के।।3।।

‘‘वीरेन्द्र’’ न दिल है लुटाने की वस्तु।
लुटाया यह जिसने रहा हाथ मलके।।4।।
रचना- स्व. श्री वीरेन्द्र सिंह जी

शुक्रवार, 6 मई 2011

राष्ट्र - देवता को आराधो

रचना- डॉ. गणेश दत्त सारस्वत
नहीं किसी को कभी सताओ, काम दूसरों के तुम आओ /
कभी न ताको ओरों का मुंह अपना बोझा आप उठाओ //

निज बाँहों पर रखो भरोसा, दुर्बलता को सबने कोसा /
कभी नहीं बिसराओ उसको, जिसने तुमको पाला-पोसा //

दुःख में सुख का अमृत ढालो, जीवन को तुम पर्व बना लो /
जो करना अभी करो तुम-नहीं आज को कल पर टालो //

जग में वही बड़े होते हैं, बीज श्रेष्ठता के जो बोते हैं /
चाहे जितनी पड़े मुसीबत फिर भी धैर्य न जो खोते हैं //

नहीं किसी से भी डरते हैं, कष्ट दूसरों के हरते हैं /
गति देते हैं जो कि प्रगति को पैर नहीं पीछे धरते हैं //

राम कृष्ण से बनो यशस्वी, नतमस्तक हों सभी मनस्वी /
इतने तपो कि बोल उठे तप धन्य-धन्य तुम धन्य तपस्वी //

तुम गोरव के बनो हिमालय, रचो नया संसार प्रभामय /
श्वास-श्वास से मुखरित हों स्वर जन्मभूमि जननी कि जय-जय //

रविवार, 17 अप्रैल 2011

बड़ी श्रध्दा से सत्संग

बड़ी श्रध्दा से सत्संग में आते चलो /
मन को विषयों के विष से हटाते चलो //

देखना इन्द्रियों के न घोड़े भगें /
रात दिन इनको संयम के कोड़े लगें /
अपने रथ को सुमार्ग चलाते रहो //

काम करते रहो नाम जपते रहो /
पाप की वासनाओं से बचते रहो /
प्रेम भक्ति के आंसू बहाते चलो //

प्राण जाये मगर प्रभु को भूलो नहीं /
दुःख में तड़पो नहीं सुख में भूलो नहीं /
भक्ति दान का खजाना बढाते चलो //