जय बीड़ी मैया, बोल जय बीड़ी मैया।
तुम को निशि-दिन ध्यावत, भाभी और भैया।।
जो तुमको सुलगावे, खर्च बढे़ धन का। देवी खर्च..।
दुःख संकट घर आवे, रक्त मिटे तन का।।१।।
तुम हो एक शनिश्चर, जग की धूम्रपति।
किस विध बचूं हाय मैं, तू घर-घर मिलती।।२।।
तम्बू, बिछौना, बिस्तर, तू छलनी करती।
खेत और खलिहानों को, साफ तू ही करती।।३।।
तू व्यापक मन्दिर-मस्जिद, क्या बैठक खटिया।
विद्यालय शौचालय, क्या चूल्हा-चकिया।।४।।
कितने लोगों की तुम हो, औषधि और पट्टी।
जब मुंह में लग जावे, तब आवे टट्टी।।५।।
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