गर कहीं लग जाए मदिरा का चस्का।
फिर तो खुदा खैर करे, किसी के न बस का।।
पीना इसको छोड़ दे, कहना मेरा मान ले।
मदिरा की ये प्यालियां, विष की प्याली जान ले।
विष भरी प्यालियां जो पिवोगे जनाब,
दुनियां मंे चंद रोज जिवोगे जनाब।
जिन्दगी का खेल समझो, शेष दस दिन का।।१।।
राजा-महाराजा गए, चली गई राजधानियां।
पी-पी प्याले मर गए, मिलती नहीं निशानियां।
बादशाह दीवान वो नवाब कहां हैं,
उनके वो नखरे ख्वाब कहां हैं ?
देखलो करिश्मा यारों की हवश का।।२।।
गली-गली में नाचते, लड़के पी-पी प्यालियां।
बिगड़ रही संतान सबकी, लोग बजाएं तालियां।
नाचती कुमारियां कुमार नाचते,
शादियों में बंदडे़ के यार नाचते।
एक बूढ़ा भी नाच रहा, सत्तर बरस का।।३।।
मन्दिर में भगवान् की, पूजा है ना पाठ है।
सूने-सूने से सब पडे़, पर मयखाने में ठाठ है।
देखले ‘बेमोल’ कैसा ढंग हो गया,
वेद का सिद्धान्त सारा भंग हो गया।
मंदिरों में भोग लगे, भांग और चरस का।।४।।
रचना-स्व. श्री लक्ष्मण सिंह ‘बेमोल’
(लय-गोरे-गोरे मुखड़े पे........)
नशा कई जिन्दगियो को बर्बाद कर देता है। नशे से दुर रहना चाहिए और अन्यो को भी दुर रखने की कोशीश करनी चाहिए
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