रचना- डॉ. गणेश दत्त सारस्वत
नहीं किसी को कभी सताओ, काम दूसरों के तुम आओ /
कभी न ताको ओरों का मुंह अपना बोझा आप उठाओ //
निज बाँहों पर रखो भरोसा, दुर्बलता को सबने कोसा /
कभी नहीं बिसराओ उसको, जिसने तुमको पाला-पोसा //
दुःख में सुख का अमृत ढालो, जीवन को तुम पर्व बना लो /
जो करना अभी करो तुम-नहीं आज को कल पर टालो //
जग में वही बड़े होते हैं, बीज श्रेष्ठता के जो बोते हैं /
चाहे जितनी पड़े मुसीबत फिर भी धैर्य न जो खोते हैं //
नहीं किसी से भी डरते हैं, कष्ट दूसरों के हरते हैं /
गति देते हैं जो कि प्रगति को पैर नहीं पीछे धरते हैं //
राम कृष्ण से बनो यशस्वी, नतमस्तक हों सभी मनस्वी /
इतने तपो कि बोल उठे तप धन्य-धन्य तुम धन्य तपस्वी //
तुम गोरव के बनो हिमालय, रचो नया संसार प्रभामय /
श्वास-श्वास से मुखरित हों स्वर जन्मभूमि जननी कि जय-जय //
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