जवानों जवानी में चलना सम्भल के।
आती नहीं ये दुबारा निकल के।।टेक।।
कठिन यह जवानी की मंजिल है प्यारों।
कभी लड़खड़ा जाओ कुछ दूर चलके।।1।।
विषयरूपी रहजन अनेकों मिलेंगे।
खबरदार ! कोई न ले जाए छल के।।2।।
सुधर जाये परलोक जिससे यतन कर।
जब आएगी मृत्यु न जाएगी टल के।।3।।
‘‘वीरेन्द्र’’ न दिल है लुटाने की वस्तु।
लुटाया यह जिसने रहा हाथ मलके।।4।।
रचना- स्व. श्री वीरेन्द्र सिंह जी
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