रविवार, 30 अक्टूबर 2011

कृण्वन्तो विश्वमार्यम् नहीं--


कृण्वन्तो विश्वमार्यम् नहीं भुलाना है।
आर्य सब संसार हमें बनाना है।।स्थाई।।


सबसे पहले सब भांति अपने को आप बनाना।
किसी संकट के झंझट से तुम पीछे मत हट जाना।
कदम बढ़ाना है।।1।।

मन वचन कर्म के अन्दर अन्तर न होने पावे।
कर्तव्य पूरा करने में चाहे जान भले ही जाये।
ना घबराना है।।2।।

ऋषि दयानन्द का जीवन है राह बताने वाला।
खाई ईंटे पत्थर गाली पीया अन्त जहर का प्याला।
प्राण गंवाना है।।3।।

श्रद्धा से श्रद्धानन्द ने सीने पे खाई गोली।
मरे लेखराम छुरी खाके लाजपत ने सही लठोली।
अमर पद पाना है।।4।।

‘ताराचन्द’ ओम् का झण्डा फहरा दो गांव नगर में।
एक वैदिक नाद बजाना तुम सारी दुनिया भर में।
धूम मचाना है।।5।।

लयः- रेशमी सलवार कुरता.........

रचनाः- स्व. श्री ताराचन्द जी ‘वैदिकतोप’

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