अगर ऋषिवर की बातों पर जमाना चल गया होता।
तो ये आँधी नहीं उठती ये तूफाँ ढल गया होता।।टेक।।
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ऋषिवर देव दयानंद जी |
चमक उठता जमाने में दुबारा वेद का सूरज।
जिहालत का जो आलम है वो सारा जल गया होता।।1।।
कहीं मजलूम ना रोते कहीं निर्दोष ना मरते।
वक्ते गर्दिश ये सर से हम सभी के टल गया होता।।2।।
ना मुरझाते लता कलियाँ शाखे गुलशन की हर टहनी।
लगाया जो ऋषिवर ने वो पौधा फल गया होता।।3।।
अरे ‘बेमोल’ ना यूं नाचते गैरों के इशारे पर।
ना गौरव ही गया होता ना अपना बल गया होता।।4।।
रचना- स्व. श्री लक्ष्मण सिंह जी ‘बेमोल‘
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