गुरुवार, 27 अक्टूबर 2011

गुरुदेव दयानन्द तुझे धन-धन.......


गुरुदेव दयानन्द तुझे धन-धन तेरी दया व उदारता ने जीत लिया मन।
कैसा जादू किया तूने भ्रम मेट दिया तूने।।टेक।।
गुरुदेव दयानंद  जी 
जब से पढ़ा है हमने सत्यार्थप्रकाश को।
तब ही से भूल बैठे अन्धविश्वास को।
दूर हुए सब विघन।।1।।

तर्क की कसौटियों पर पूरा ही तू पाया है।
हजारों विरोधियों ने तुझे आजमाया है।
गये करके नमन।।2।।

हृदय विशाल देखो कैसा योगिराज का।
लेशमात्र लोभ था ना तख्त का ना ताज का।
तूने छुए ना रतन।।3।।

किसी ने पिलाये तुझे विष भरे प्याले।
किसी ने ‘बेमोल’ फैंके विषधर काले।
किये लाखों यतन।।4।।

रचना- स्व. श्री लक्ष्मणसिंह जी ‘बेमोल’

1 टिप्पणी: