रविवार, 30 अक्टूबर 2011

छोटे-छोटे पाँव हैं अपने--


छोटे-छोटे पाँव हैं अपने आगे मंजिल बड़ी-बड़ी।
निकल पड़ो रे छांव से बाहर धूप बुलाती खड़ी-खड़ी।।टेक।।

छोटे-छोटे पाँव हैं अपने
आगे मंजिल बड़ी-बड़ी---
जहाँ-जहाँ भी आँसू होंगे हम पहुँचेंगे वहीं-वहीं।
फूलों पर जो शूल बिछें हैं आगे बढ़ते रहें वहीं।
देख रही है दुनियां हमको चौरस्ते पर खड़ी-खड़ी।।1।।

जिस मिट्टी में जन्म लिया है उसका कर्ज चुकायेंगे।
हम गुलाब की कलियां हैं इस धरती को महकायेंगे।
जीवन आगे बढ़ जाता है मौत सिसकती पड़ी-पड़ी।।2।।

आओ हम सब काम करें अब देश को स्वर्ग बनायेंगे।
ऊँच-नीच के भेद भाव को मिलकर आज मिटायेंगे।
बिखर रही मोती की लड़ियां हम जोड़ेंगे कड़ी-कड़ी।।3।।

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