गुरुवार, 22 अक्टूबर 2015

आजादी की दुल्हन मेरे, कफन की चुनरी ओढ़े-।


आजादी की दुल्हन मेरे, कफन की चुनरी ओढ़े।
आयेगी माँ घर तेरे दिन रह गए थोड़े।।

मौत बनेगी मेरी दुल्हन, है अभिशाप गुलामी का बन्धन।
रंग लाएगी कुर्बानी माँ, हिल जाएगा ब्रिटिश शासन।
जन्म दुबारा लेकर के, जंजीर सितम की तोड़े।।1।।

सच माँ नहीं फांसी का डर है, नाशवान् देह जीव अमर है।
अब तो अथेली के ऊपर सिर है, फिर मरने का हमें क्या डर है।
जालिम के कब तलक सहेंगे, नंगे बदन पर कोडे़।।2।।

देश की खातिर मर जायेंगे, मरकर भी फिर हम आयेंगे।
आकर के दुश्मन के ऊपर, बम और गोली बरसायेंगे।
कसम मादरे हिन्द, फिरंगी का जिन्दा नहीं छोडे़ं।।3।।

हम इतने अंजान नहीं माँ, इस जीने में शान नहीं माँ।
मातृभूमि की रक्षा करना, फर्ज है ये एहसान नहीं माँ।
हक चाहते हैं भीख नही हम, ‘कर्मठ‘ हाथ क्यों जोडे़ं।।4।।

श्री बृजपाल जी कर्मठ द्वारा रचित गीत 
लय-लिखने वाले ने लिख डाले................।

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