हँसते हँसते जिया करें, ये ही नौजवानी होती है।
देश धर्म पर मरें जो उनकी अमर कहानी होती है।।
वीर भगतसिंह एक रोज कचहरी बीच बुलाया गया।
हँसना यहाँ पर सख्त मना है यों उसको समझाया गया।
मगर हँसी को रोक सका ना भारी उसे दबाया गया।
इसको फाँसी होनी चाहिए ऐसा हुक्म सुनाया गया।
तौहीन अदालत की करना भारी शैतानी होती है।।1।।
जज से बोला भगतसिंह आवे हँसने में आनन्द मुझे।
धधक रही है ज्वाला दिल में कभी बुझाई नहीं बुझे।
सदा शहीदों की जय बुलती कायर कमीने नहीं पुजें।
फाँसी पर आ गई हाँसी तो कहाँ मरण ने जगह तुझे।
फाँसी गोली से मरना वीरों की निशानी होती है।।2।।
बैरागी बन्दे की घटना जज साहब तेरे याद नहीं।
सिंडासियों से खाल नौंच ली तन से खून की धार बही।
सरिये करके लाल घुसडे़ तन में और बता क्या कसर रही।
बच्चा करके कत्ल मांस की बोटी मुंह में ठूँस दई।
हंस-हंस के बैरागी कहे मुझे ना परेशानी होती है।।3।।
जिसने हंसना सीख लिया वो ना जीवन में रोएगा।
वीर बहादुर मिट सकता है स्वाभिमान ना खोएगा।
झूठा चापलूस मिन्नत कर मुंह का थूक बिलोएगा।
ईश्वर का विश्वासी आर्य सन्मार्ग ही टोहेगा।
नित नई वीरों की गाथा नहीं पुरानी होती है।।4।।
देश धर्म पर मिटने वाले वीर हमेशा ढेटे हों।
कभी नहीं मिटते हैं जिन्होंने देश के संकट मेटे हों।
सौभाग्य यही शृंगार यही जो मौत के साथ लपेटे हों।
‘खेमचन्द‘ धन्य-धन्य वो जननी जिसके ऐसे बेटे हों।
सहस बढ़ाए बच्चों का वो मां मर्दानी होती है।।5।।
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