ऐ वतन के नौजवां जा रहा है तू कहाँ।
याद कर वो दास्तां जिसको गाता है जहाँ।।
थर-थराती थी जमीं जब कदम धरता था तू।
काल भी हो सामने पर नहीं डरता था तू।
आज भी करते बयां ये जमीं ओर आसमां।।1।।
रहजनों हमलावरों का सिर झुकाया था कभी।
बाजुए कुव्वत में तेरी नभ हिलाया था कभी।
हाथ ले तीरों कमां तू मगर बढ़ता गया।।2।।
तूने रखी लाज अपनी बहनों के सिन्दूर की।
चाल भी चलने न पाई दुष्ट पापी क्रूर की।
उनकी वो खर मस्तियां मेट डाली हस्तियां।।3।।
क्या कहूं बेमोल तेरा आज कैसा ढंग है।
रंग-महफिल में भी तेरा रंग सब बदरंग है।
खो दिया सब हौसला शिवा और प्रताप का।।4।।
उठ खड़ा हो तान सीना, करके तू हुंकार को।
जुल्म पाखंड की मिटादे मजहबी दीवार को।
तेरे चर्चों को बयां फिर करेगा ये जहां।।5।।
अर्योपदेशक श्री लक्ष्मण सिंह 'बेमोल'
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