गुरुवार, 21 जनवरी 2016

सत्ता तुम्हारी भगवन्, जग में समा रही है--।

सत्ता तुम्हारी भगवन्, जग में समा रही है।
तेरी दया सुगन्धी हर गुल से आ रही है।।



रवि-चन्द्र और तारे तूने बनाये सारे।
सबमें ये तेरी ज्योति, इक जगमगा रही है।।1।।

विस्तृत वसुन्धरा पर, सागर बनाये तूने।
तह जिनकी मोतियों से, अब चमचमा रही है।।2।।

दिन-रात प्रातः-सायं मध्याह्न भी बनाया।
ऋतु पलट-पलट अपना, करतब दिखा रही है।।3।।

सुन्दर सुगंधी वाले, पुष्पों में रंग तेरा।
यह ध्यान फूल पत्ती, तेरा दिला रही है।।4।।

हे ब्रह्म विश्व कर्ता, वर्णन हो तेरा कैसे।
जल-थल में तेरी महिमा हे ईश छा रही है।।5।।

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