ओम् नाम अति प्यारा, मुझे ओम् नाम अति प्यारा।
जीने का सहारा मेरे, जीने का सहारा।।टेक।।
जीने का सहारा मेरे, जीने का सहारा।।टेक।।
ओम् नाम अति प्यारा.......
रोम-रोम में ओम् बसा है, ओम् नाम सुखदायी।
रक्षक-पोषक मात-पिता है, वही बहन और भाई।
सारे सहारे छूट जायें पर, उसका मिले सहारा।।01।।
हर पल ओम् का नाम हो मुख में, यही कामना मन में।
कतरा-कतरा ओममयी हो, जो भी है इस तन में।
तन-मन-धन सब ओम् पे अर्पण, जीवन ओम् पे वारा।।02।।
नेक भावना लेकर मन में, ओम् नाम उच्चारो।
फंसी भंवर में पार हो नैया, सुनलो ओम् के प्यारों।
जग को रचता ओर टिकाता, वही है पालन हारा।।03।।
ओम् नाम आनन्द का सागर, मैं आनन्द पिपासु।
खुशी मिलन की अपार कभी, और कभी छलकते आंसू।
’संजीव’ हृदय में झाँक देख ले, ना फिर मारा-मारा।।04।।
रचनाकार:- संजीव कुमार आर्य
मुख्य-संरक्षक गुरुकुल कुरुक्षेत्र
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें