धरती में चाँदी और सोना पैदा करता रहा किसान।
महलों में सोने वाले तू जान सके तो जान।।
धरती माँ का वीर सिपाही सर्दी और बरसातों में।
तुम क्या जानो कैसे मरता घोर अन्धेरी रातों में।
नहीं बेचारे के हाथों में रोटी कपड़ा और मकान।।१।।
मेहनत कस लोगों के तन पर केवल एक लंगोटी है।
फौलादी हाथों में केवल गंठा सूखी रोटी है।
हंसते-हंसते किया देश पर तन-मन-धन सारा कुर्बान।।२।।
धरती के कण-कण में इसका बहता खून-पसीना है।
पत्थर भी मेहनत के बल पर बनता एक नगीना है।
इसका सब कुछ छीना है पर फिर भी खुलती नहीं जुबान।।३।।
देश कहाँ उत्थान करेगा जब कृषक खुशहाल न हो।
रोटी देने वालों का भी रोटी एक सवाल न हो।
सूखी धरती लाल न हो तू इनकी पीड़ा को पहचान।।४।।
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