आर्यों के तुम हो प्राण ऋषि, दयानन्द तुम्हारा क्या कहना।
तेरी भक्ति का क्या कहना, ईश्वर की शक्ति का क्या कहना।
वेदों का किया है प्रचार ऋषि दयानन्द तुम्हारा क्या कहना।।
कन्या गुरुकुल भी खुलवाये विधवा विवाह भी करवाये।
नारी का किया सम्मान ऋषि दयानन्द तुम्हारा क्या कहना।
पाखण्ड मिटाया है जग से अन्धकार का पर्दाफाश किया।
डूबतों को उभारा है तुमने दयानन्द तुम्हारा क्या कहना।।
ईंटे पत्थर खाये तुमने पर भेद नही लाये मन में।
करुणा के थे भंडार ऋषि दयानन्द तुम्हारा क्या कहना।।
पाचक ने विष का दूध दिया ऋषिराज ने उसको माफ किया।
कई बार किया विषपान ऋषि दयानन्द तुम्हारा क्या कहना।।
मरकर भी अमर है नाम तेरा हरिओम मूल का क्या कहना।
सच्चे ईश्वर की तलाश करी ऋषि दयानन्द तुम्हारा क्या कहना।।