जीवन ख़त्म हुआ तो जीने का ढंग आया.
जब शमा बुझ गई तो महफ़िल में रंग आया..
मन की मशीनरी ने, जब ठीक चलना सीखा.
तब बूढ़े तन के हर इक पुर्जे में जंग आया..
फुरशत के वक्त में न सिमरन का वक्त निकला.
उस वक्त-वक्त माँगा जब वक्त तंग आया..
आयु ने नत्था सिंह जब, हथियार फैंक डाले.
यमराज फोज लेकर, करने को जंग आया..
रचना:- श्री नत्था सिंह
aise hi bajno ka sangreh yaha karte raho aarya ji jo padegha kuch to sikhega
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