न गाया ईश गुण, माया का गुण गाया तो क्या गाया
न भाया पुण्य , केवल पाप मन भाया तो क्या भाया
तुझे संसार सरोवर में कमल की भान्ति रहना था
न छोड़ी वासना, घर छोड़ वन धाया तो क्या धाया
किसी का विश्व से अस्तित्व ही बिल्कुल मिटाने को
अमर बेली की सदृश तू कहीं छाया तो क्या छाया
परम अनुपम गगन चुम्बी भवन अपना बनाने को
किसी निर्बल दुखी निर्धन का घर ढाया तो के ढाया
प्रकाशानन्द तो जब है खिलाओ ओरों को पहले
मधुर भोजन अकेले आप ही खाया तो क्या खाया
रचना - प्रकाश जी कविरत्न
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