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वेदोध्दारक महर्षि दयानन्द जी |
दुनियां वालो देव दयानंद दीप जलाने आया था |
भूल चुके थे राहें अपनी वह दिखलाने लाया था |टेक
घोर अँधेरा जग में छाया नजर नही कुछ आता था |
मानव मानव की ठोकर से जब ठुकराया जाता था |
आर्य जाति सोई पड़ी थी घर घर जा के जगाता था |
दुनियां वालो देव दयानंद दीप जलाने आया था |१
बंट गया सारा टुकड़े टुकड़े भारत देश जागीरो में |
शासन करते लोग विदेशी जोश नही था वीरो में |
भारत माँ को मुक्त किया जो जकड़ी हुयी थी जंजीरों में |
दुनिया वालो देव दयानंद दीप जलाने आया था |२
जब तक जग में चार दिशाएं कुदरत के ये नजारे है |
सागर,नदियां,धरती ,अम्बर ,जंगल ,पर्वत सारे है |
पथिक रहेगा नाम ऋषि का जब तक चाँद सितारे है |
दुनिया वालो देव दयानंद दीप जलाने आया था |
भूल चुके थे राहें अपनी वह दिखलाने आया था |३
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