रविवार, 19 अगस्त 2012

हे प्रभो ! हम चलें पावन पथ पर।

ओम्- स्वस्ति पन्थामनुचरेम सूर्याचन्द्रमसाविव।
पुनर्ददताघ्नता जानता संगमेमहि।।



हे प्रभो ! हम चलें पावन पथ पर।
सूर्य चन्द्र सम अविचल रहकर।।

दान करें दुःख दीन का हर।
भाव भरो यह हमरे उर।।

उस पथ चलें हम जिस पथ चलकर।
भाव अहिंसक जगे हमरे उर।।

ज्ञान बढ़ावें ज्ञानी की संगत।
काटें भव के बंधन मिलकर।।

रचना- नन्दकिशोर आर्य
प्राध्यापक संस्कृत गुरुकुल कुरुक्षेत्र

बुधवार, 15 अगस्त 2012

सुखधाम सदा तेरा नाम सदा,

सुखधाम सदा तेरा नाम सदा,

कोई तुझसा और महान नहीं | सुखधाम.....

कण कण में रमा, घट घट में बसा

तेरा अपना कोई मकान नहीं | सुखधाम..... 


कोई दींन दुखी जो पुकारे तुझे

सुनता है प्रभु तु सदा उसकी

तुझे कहते हैं नाथ दयालु सभी

कोई तुझसा दयानिधान नहीं | सुखधाम.......



तुने यूँ तो रचाए जमीं आसमाँ

पर्वत सागर बहती नदियाँ

पर ढूंढने तुझको जाएँ कहाँ

तेरा पता व कोई निशान नहीं | सुखधाम......


हे जगत पिता हे जगत पति

कोई जान सका न तुम्हारी गति

क्या योगी यति क्या साधू सती

कोई दूजा तेरे समान नहीं | सुखधाम.......

तेरा नाम जपूँ प्रभु ये वर दो

बेमोल की अब झोली भर दो

करूणानिधि अब करुणा कर दो

कोई तुझसा करुणानिधान नहीं | सुखधाम.......