ओम्- स्वस्ति पन्थामनुचरेम सूर्याचन्द्रमसाविव।
पुनर्ददताघ्नता जानता संगमेमहि।।
हे प्रभो ! हम चलें पावन पथ पर।
सूर्य चन्द्र सम अविचल रहकर।।
दान करें दुःख दीन का हर।
भाव भरो यह हमरे उर।।
उस पथ चलें हम जिस पथ चलकर।
भाव अहिंसक जगे हमरे उर।।
ज्ञान बढ़ावें ज्ञानी की संगत।
काटें भव के बंधन मिलकर।।
रचना- नन्दकिशोर आर्य
प्राध्यापक संस्कृत गुरुकुल कुरुक्षेत्र
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