ओम् नाम नित बोल रे मन ओम् नाम नित बोल ।
मनवा ओम् नाम नित बोल
ओम् नाम है प्रभु का प्यारा
यही है तेरा तारण हारा
इधर-उधर मत डोल
मनवा ओम् नाम नित बोल।।01।।
मानव का तन तूने पाया
सर्वोत्तम जो गया बताया
चोला ये अनमोल
मनवा ओम् नाम नित बोल।।02।।
जिह्वा से तू ओम् सुमर ले
भव सागर से पार उतर ले
कटु वचन मत बोल
मनवा ओम् नाम नित बोल।।03।।
ओम् नाम से प्रीत लगाले
मन मन्दिर में जोत जगाले
लगता ना कुछ मोल
मनवा ओम् नाम नित बोल।।04।।
अमृम झरना झर-झर झरता
पीकर क्यों ना पार उतरता
जहर ना इसमें घोल
मनवा ओम् नाम नित बोल।।05।।
मोह माया के बंधन सारे
जीवन तेरा खाक बनारे
बंधन दे सब खोल
मनवा ओम् नाम नित बोल।।06।।
इधर-उधर जो फिरेगा मारा
कभी मिले ना तुझे किनारा
भेद दिया सब खोल
मनवा ओम् नाम नित बोल।।07।।
हीरा जन्म अमोलक पाया
‘‘संजीव’’ तू इसे समझ न पाया
कांच समझ रहा तोल
मनवा ओम् नाम नित बोल।।08।।
रचना- श्री संजीव कुमार आर्य
मुख्य-संरक्षक, गुरुकुल कुरुक्षेत्र
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