हे प्रभो दूर करो दुरितानि--
ओम्- विश्वानि देव सवितर्दुरितानि परासुव।
यद्भद्रं तन्न आ सुव।।
हे प्रभो दूर करो दुरितानि।
पास रहो हमरे तुम दानी।।
भाव हमारे श्रेष्ठ बनाओ।
श्रेय गहे बनकर के ज्ञानी।।
देव हमारे सविता तुम हो।
रहूँ मैं तुमरे बन ढिग ध्यानी।।
रचना- नन्दकिशोर आर्य
प्राध्यापक संस्कृत गुरुकुल कुरुक्षेत्र
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