शनिवार, 1 सितंबर 2012

हे प्रभो दूर करो दुरितानि--


ओम्- विश्वानि देव सवितर्दुरितानि परासुव।
यद्भद्रं तन्न आ सुव।।



हे प्रभो दूर करो दुरितानि।
पास रहो हमरे तुम दानी।।

भाव हमारे श्रेष्ठ बनाओ।
श्रेय गहे बनकर के ज्ञानी।।

देव हमारे सविता तुम हो।
रहूँ मैं तुमरे बन ढिग ध्यानी।।



रचना- नन्दकिशोर आर्य
प्राध्यापक संस्कृत गुरुकुल कुरुक्षेत्र

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें