हे प्रभो मेधा बुद्धि दीजै--
ओम्- यां मेधां देवगणाः पितरोश्चोपासते।
तया मामद्य मेधयाग्ने मेधाविनं कुरु स्वाहा।।
हे प्रभो मेधा बुद्धि दीजै।
कर्म हमारे पावन कीजै।।
जिसको ध्यावें देव पितर सब।
वह सुमति हमें अब ही दीजै।।
तुम हो ईश्वर अगन सुपावन।
भाव हमारे उज्ज्वल कीजै।।
रचना- नन्द किशोर आर्य
प्राध्यापक-संस्कृत
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