रीत पुरानी गुरुकुल शिक्षा, अति उत्तम है बतलाई।
जीवन जहाँ पे सुन्दर बनजा, ऐसी विद्या सिखलाई।।
चार बजे उठ रोज सवेरे, ईश्वर का गुणगान करें।
नितकर्मों से निवृत्त होकर, बाहर को प्रस्थान करें।।
आसन-दौड़-दण्ड-बैठक व अलग-अलग प्राणायाम करें।
वज्जर जैसा गात बने फिर, ऐसे भी व्यायाम करें।।
रगड़-रगड़ के स्नान करें, जिससे जाग उठेगी तरुणाई।।1।।
आत्मा का भोजन है सन्ध्या, रोज सवेरे शाम करें।
ऊँचा बने पवित्र जीवन, काम ये आठों याम करें।।
पौष्टिक-मधु-कीटाणुनाशक, सुगन्धित द्रव्य मिलान करें।
मन्त्रों का उच्चारण करके, यज्ञकर्म का विधान करें।।
बढे़ पराक्रम-बल व बुद्धि, ऐसी विधि है जतलाई।।2।।
तीन समय का सात्त्विक भोजन, तन को पुष्ट बनाता है।
गला-सड़ा व बासी भोजन, मन को दुष्ट बनाता है।।
अन्न प्राण हैं ध्यान में रखकर, इसको न बर्बाद किया।
जितनी भूख उतना ले भोजन, धरती को आबाद किया।।
शान्तभाव से करना भोजन, उत्तमविधि है कहलाई।।3।।
शिक्षा का उद्देश्य एक है, बालक मानव बन जाये।
गुरु के कुल में रह ब्रह्मचारी, अन्तेवासी कहलाये।।
भाव भेद का गुरु के मन में, रत्ति भर भी ना आये।
समान शिक्षा-वस्त्र-भोजन, हर बालक को दिलवाये।।
राजा या निर्धन का बेटा, हो जगह पर बिठलाई।।4।।
रीत पुरानी गुरुकुल शिक्षा, इसका पुनः उद्धार करो।
गौरवशाली गुण गरिमामय, भारत का आधार भरो।।
लड़का-लड़की पढें अलग से, भूमिका तैयार करो।
राम-कृष्ण-हनुमान बली व दयानन्द तैयार करो।।
पाखण्ड व अन्धविश्वास बढे़, जब गुरुकुल शिक्षा झुठलाई।।5।।
जगद्गुरु का मान मिला था, गुरुकुल की प्रणाली से।
बैठ सांझ को शास्त्र चर्चा, करते हाली पाली से।।
सत्-रज-तम से ईश्वर तक की, यात्रा के पुजारी थे।
’किशोर’ काल से आ’नन्द’ में, सब डूबे यहाँ नरनारी थे।।
धूल जमी थी बहुत काल से, दयानन्द ऋषि ने हटलाई।।6।।
रचनाः- नन्दकिशोर आर्य
प्राध्यापक संस्कृत
गुरुकुल कुरुक्षेत्र (हरियाणा)