शुक्रवार, 21 सितंबर 2012




अटल है इरादा, अपने राष्ट्र को बचायेंगे।
स्वदेशी अपनायेंगे, विदेशी भगायेंगे।।

नये-नये जहर आकर विदेशी बनाते हैं।
प्रचार है अनोखा, भोली जनता को बहकाते हैं।
मिरिण्डा और पेप्सी कोला पीवे ना पिलायेंगे।।01।।

अलग-अलग साबुन देखो, बाजारों में लाये हैं।
दाम इनके बड़े भारी, लूट-लूट खायें हैं।
लक्स, लिरिलि, ओ.के. कभी पियर्स से ना नहायेंगे।।02।।

कोलगेट और क्लॉज अप जैसे पेस्ट बनाते हैं।
हड्डियों का चूरा डाल, सेकरीन मिलाते हैं।
त्रिफला, त्रिकुटात्र तूतिया, माजुफल मिलायेंगे।।03।।

शुद्ध सादा नमक छोड़, पीसा हुआ लाये हैं।
पांच गुने दाम एक किलो पर बढाये हैं।
कैप्टेनकुक नमक ‘‘संजीव’’ कभी नहीं खायेंगे।।04।।

रचना- श्री संजीव कुमार आर्य
मुख्य-संरक्षक, गुरुकुल कुरुक्षेत्र

लय-चुप-चुप खडे़ हो.................




गुरुवार, 20 सितंबर 2012

हे प्रभो मेधा बुद्धि दीजै--


ओम्- यां मेधां देवगणाः पितरोश्चोपासते।
तया मामद्य मेधयाग्ने मेधाविनं कुरु स्वाहा।।










हे प्रभो मेधा बुद्धि दीजै।
कर्म हमारे पावन कीजै।।

जिसको ध्यावें देव पितर सब।
वह सुमति हमें अब ही दीजै।।

तुम हो ईश्वर अगन सुपावन।
भाव हमारे उज्ज्वल कीजै।।

रचना- नन्द किशोर आर्य 
प्राध्यापक-संस्कृत 

बलिदान हुए जो देश की खातिर----


बलिदान हुए जो देश की खातिर, देश की खातिर मेरे राष्ट्र की खातिर।
हां जी हां ये उनको नमन है।।टेक।।


शनिवार, 1 सितंबर 2012

हे प्रभो दूर करो दुरितानि--


ओम्- विश्वानि देव सवितर्दुरितानि परासुव।
यद्भद्रं तन्न आ सुव।।



हे प्रभो दूर करो दुरितानि।
पास रहो हमरे तुम दानी।।

भाव हमारे श्रेष्ठ बनाओ।
श्रेय गहे बनकर के ज्ञानी।।

देव हमारे सविता तुम हो।
रहूँ मैं तुमरे बन ढिग ध्यानी।।



रचना- नन्दकिशोर आर्य
प्राध्यापक संस्कृत गुरुकुल कुरुक्षेत्र

ओम् नाम नित बोल रे मन


ओम् नाम नित बोल रे मन ओम् नाम नित बोल ।
मनवा ओम् नाम नित बोल

ओम् नाम है प्रभु का प्यारा
यही है तेरा तारण हारा
इधर-उधर मत डोल
मनवा ओम् नाम नित बोल।।01।।

मानव का तन तूने पाया
सर्वोत्तम जो गया बताया
चोला ये अनमोल
मनवा ओम् नाम नित बोल।।02।।

जिह्वा से तू ओम् सुमर ले 
भव सागर से पार उतर ले
कटु वचन मत बोल
मनवा ओम् नाम नित बोल।।03।।

ओम् नाम से प्रीत लगाले
मन मन्दिर में जोत जगाले
लगता ना कुछ मोल
मनवा ओम् नाम नित बोल।।04।।

अमृम झरना झर-झर झरता
पीकर क्यों ना पार उतरता
जहर ना इसमें घोल
मनवा ओम् नाम नित बोल।।05।।

मोह माया के बंधन सारे
जीवन तेरा खाक बनारे
बंधन दे सब खोल
मनवा ओम् नाम नित बोल।।06।।

इधर-उधर जो फिरेगा मारा
कभी मिले ना तुझे किनारा
भेद दिया सब खोल
मनवा ओम् नाम नित बोल।।07।।

हीरा जन्म अमोलक पाया
‘‘संजीव’’ तू इसे समझ न पाया
कांच समझ रहा तोल
मनवा ओम् नाम नित बोल।।08।।

रचना- श्री संजीव कुमार आर्य
मुख्य-संरक्षक, गुरुकुल कुरुक्षेत्र