सोमवार, 25 फ़रवरी 2013

अजब हैरान हूँ भगवन् ! तुम्हें कैसे रिझाऊँ मैं



अजब हैरान हूँ भगवन् ! तुम्हें कैसे रिझाऊँ मैं।
कोई वस्तु नहीं ऐसी जिसे सेवा में लाऊँ मैं।।

करें किस तौर आवाहन कि तुम मौजूद हो हर जो।
निरादर है बुलाने को अगर घण्टी बजाऊँ मैं।।१।।

तुम्हीं हो मूर्ति में भी, तुम्हीं व्यापक हो फूलों में।
भला भगवान् पर भगवान् को कैसे चढ़ाऊँ मैं।।२।।

लगाना भोग कुछ तुमको, यह एक अपमान करना है।
खिलाता है जो सब जग को, उसे क्योंकर खिलाऊँ मैं।।३।।

तुम्हारी ज्योति से रोशन हैं सूरज, चाँद और तारे।
महा अन्धेर है कैसे तुम्हें दीपक दिखाऊँ मैं।।४।।

भुजायें हैं न गर्दन है, न सीना हे न पेशानी।
तुम हो निर्लेप नारायण ! कहाँ चन्दन लगाऊँ मैं।।५।।


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