तुम हो प्रभु चाँद मैं हूँ चकोरा।
तुम हो कमल फूल, मैं रस का भौंरा।।
ज्योति तुम्हारी का मैं हूँ पतंगा।
आनन्द-घन तुम हो मै बन का मोरा।।१।।
जैसे है चुम्बक की लोहे से प्रीति।
आकर्षण करे मोह लगातार तोरा।।२।।
पानी बिना जैसे हो मीन व्याकुल।
ऐसे ही तड़पाये तोरा बिछोरा।।३।।
इक बून्द जल का मैं प्यासा हूँ चातक।
अमृत की करो वर्षा हरो ताप मोरा।।४।।
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