तेरे दर को छोड़कर किस दर जाऊँ मैं।
सुनता मेरी कौन है किसे सुनाऊँ मैं।।
जब से याद भुलाई तेरी, लाखों कष्ट उठायें हैं।
क्या जानूँ इस जीवन अन्दर कितने पाप कमायें हैं।
हूँ शर्मिन्दा आपसे, क्या बतलाऊँ मैं।।¬१।।
मेरे पाप कर्म ही तुझसे प्रीत न करने देते हैं।
कभी जा चाहूँ मिलूँ आपसे घेर मुझे ये लेते हैं।
कैसे स्वामी आपके दर्शन पाऊँ मैं।।२।।
है तू नाथ ! वरों का दाता तुझसे सब वर पाते हैं।
ऋषि-मुनि और योगी सारे तेरे ही गुण गाते हैं।
छींटा दे दो ज्ञान का, होश में आऊँ मैं।।३।।
जो बीती सो बीती लेकिन बाकी उमर सम्भालूँ मैं।
प्रेमपाश में बन्धा आपके गीत प्रेम से गालूँ मैं।
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