जय जय पिता परम आनन्ददाता।
जगदादि कारण मुक्ति-प्रदाता।।
अनन्त और अनादि विशेषण हैं तेरे।
तू सृष्टि का स्रष्टा तू धर्ता संहर्ता।।१।।
सूक्ष्म से सूक्ष्म है स्थूल इतना।
कि जिसमें यह ब्रह्माण्ड सारा समाता।।२।।
मैं लालित व पालित हूँ पितृस्नेह का।
यह प्राकृत सम्बन्ध है तुझसे त्राता।।३।।
करो शुद्ध निर्मल मेरी आत्मा को।
करूँ मैं विनय नित्य सायं व प्रातः।।४।।
मिटाओ मेरे भय के आवागमन के।
फिरूँ न मैं जन्म पाता और बिलबिलाता।।५।।
बिना तेरे है कौन दीनन का बन्धु।
कि जिसको मैं अपनी अवस्था सुनाता।।६।।
‘अमी’ रस पिलाओ कृपा करके मुझको।
रहूँ सर्वदा तेरी कीर्ति को गाता।।७।।
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