ऐ ऋषि याद आये जमाना तेरा।
ऐ ऋषि काम वेदों का लाना तेरा।।
अन्धियारी रात में कोई ना था साथ में।
ऋषि था अकेला और वेद थे हाथ में।
ऐसी मुश्किलों में यहां आना तेरा।।1।।
हवा प्रतिकूल थी नहीं अनुकूल थी।
समझा ना जग ने तुझको बड़ी भारी भूल की।
न छोड़ा जालिमों ने सताना तेरा।।2।।
लगा जब सुधारने काशी हरिद्वार में।
फैंक भी दिया तुझको गंगा की धार में।
काम था प्रभु का बचाना तेरा।।3।।
चला छोड़ बस्ती का तजा बुतपरस्ती को।
उदयपुर में ठुकराया था लाखों की हस्ति को।
दिल था प्रभु का दिवाना तेरा।।4।।
कार्तिक का महिना था अभी बहुत जीना था।
पिलाया था जहर पापी जगन्नाथ कमीना था।
‘कर्मठ’ जहर पीकर भी मुस्कुराना तेरा।।5।।
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