मंगलवार, 19 फ़रवरी 2013

ओम् नाम का सुमिरन करले कर दे भव से पार तुझे




ओम् नाम का सुमिरन करले कर दे भव से पार तुझे।
कह लिया कितनी बार तुझे।।स्थाई।।


जिस नगरी में वास तेरा यह ठग चोरों की बस्ती है।
लुट जाते हैं बड़े-बड़े यहां फिर तेरी क्या हस्ती है।
जिसको अपना समझ रहा ये धोखा दे संसार तुझे।।1।।


हाथ पकड़कर गली-गली जो मित्र तुम्हारे डोल रहे।
कोयल जैसी मीठी वाणी कदम-कदम पर बोल रहे।
बनी के साथी बिगड़ी में ना गले लगाये यार तुझे।।2।।


दौलत का दीवाना बनकर धर्म कर्म सब भूल रहा।
पाप पुण्य कुछ पता नहीं क्यों नींद नशे में टूल रहा।
ईश्वर को भी नहीं जानता ऐसा चढ़ा खुमार तेरे।।3।।


तुझसे पहले गये बहुत से कितना धन ले साथ गये।
‘लक्ष्मणसिंह बेमोल’ कहे वो सारे खाली हाथ गये।
तू भी खाली हाथ चलेगा देखेंगे नर नार तुझे।।4।।

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