गुरुवार, 28 अप्रैल 2011

ईश्वर तुझे हैं कहते

ईश्वर तुझे हैं कहते, भगवन है नाम तेरा /
हर शाख-शाख में है, प्रभु ओम नाम तेरा //

पुराणों में तू छिपा है वेदों में तू लिखा है /
गीता पुकारती है प्रभु ओम नाम तेरा //

आजा तू मेरे घर में घर-घर बना के खेलें /
नन्हा सा घर है मेरा जिसमें मक़ाम तेरा //

रविवार, 17 अप्रैल 2011

तुम्हारे दिव्य दर्शन की

तुम्हारे दिव्य दर्शन की मैं इच्छा ले के आया हूँ /
पिला दो प्रेम का अमृत पिपासा ले के आया हूँ //

रत्न अनमोल लाने वाले लाते भेंट को तेरी /
मैं केवल आंसुओं की मंजू माला ले के आया हूँ //

जगत के रंग सब फीके तू अपने रंग में रंग दे /
मैं अपना यह महाबदरंग बाना ले के आया हूँ //

'प्रकाशानंद' हो जाये मेरी अँधेरी कुटिया में /
तुम्हारा आसरा विश्वास आशा ले के आया हूँ //

बड़ी श्रध्दा से सत्संग

बड़ी श्रध्दा से सत्संग में आते चलो /
मन को विषयों के विष से हटाते चलो //

देखना इन्द्रियों के न घोड़े भगें /
रात दिन इनको संयम के कोड़े लगें /
अपने रथ को सुमार्ग चलाते रहो //

काम करते रहो नाम जपते रहो /
पाप की वासनाओं से बचते रहो /
प्रेम भक्ति के आंसू बहाते चलो //

प्राण जाये मगर प्रभु को भूलो नहीं /
दुःख में तड़पो नहीं सुख में भूलो नहीं /
भक्ति दान का खजाना बढाते चलो //

तुम्हीं मेरे बन्धु

तुम्हीं मेरे बन्धु सखा तुम ही मेरे / 
तुम्हीं मेरी माता तुम ही पिता हो //

तुम्हें छोड़ किसकी शरण में मैं जांऊ /
है सब कुछ तेरा क्या तुझ पर चढाऊं /
तुम्ही मेरी विद्या तुम्हीं मेरी दोलत /
मैं क्या-क्या बताऊं की तुम मेरे क्या हो //

तुम्हीं ने बनाये शशि चाँद तारे /
अगन और गगन जल हवा भूमि सारे /
तुम्हीं ने रचा है ये संसार सारा /
अजब कारीगर हो अजब रचयिता हो //

जमाना तुम्हें ढूंढता फिर रहा है /
न पाया किसी को छिपा है /
पता मिल रहा है पत्ते-तत्ते से तेरा /
गलत है जो कहते हैं तुम लापता हो //

अजब तेरी लीला अजब तेरी माया /
सभी से अलग है सभी में समय /
सत्ता से तेरी मुकर जांए कैसे की /
हर सूँ वीरेंदर रहे जगमगा हो //

भला करो भगवान

भला करो भगवान सबका भला करो /

हम सब आये शरण तिहारी, भगवन सुनलो विनय हमारी /
दो बुध्दि का दान-सबका भला करो //

अंग-अंग सब रोग-रहित हों, मानव का मानव से हित हो /
करो स्वास्थ्य प्रदान-सबका भला करो //

श्रध्दा सीखें श्रध्दानन्द  से, दया को धारें दयानन्द से /
दिया घातक को दान-सबका भला करो //

बुरे कर्म के पास न जाएँ, रल-मिल के तेरे गुण गावें /
यही विजय का गान-सबका भला करो //

शुध्द सरल सबका जीवन हो, तेरी भक्ति में तन-मन हो /
मानव बने महान-सबका भला करो /

वैदिक धर्म के व्रत को पालें, राम कृष्ण की संस्कृति धारें /
बनें वीर हनुमान-सबका भला करो //

तुम हो सारे जग के पालक, मात-पिता तुम, हम हैं बालक /
मागें ये वरदान-सबका भला करो //

सूरज पृथ्वी चाँद सितारे, चमकें सारे न्यारे-न्यारे /
करें तेरा गुणगान-सबका भला करो //

गर्भ में कैसे गात बनाओ-गात बनाकर जोत जगाओ /
है बुध्दि हैरान-सबका भला करो //

उसी बीज से फूल उगाये, कांटे भी उस बीज में पाए /
कह ना सके जुबान-सबका भला करो //

शुध्द विचार कुटी में भर दो, बुरी भावना दूर ही कर दो /
हो सबका कल्याण-सबका भला करो //

आशानन्द जब अंत समय हो, रोम-रोम में ओम की लय हो /
ओ३म से छूटें प्राण-सबका भला करो //

सदा फूलता फलता भगवन

सदा फूलता फलता भगवन, यह याजक परिवार रहे /
रहे प्यार जो किसी से इनका, सदा आपसे प्यार रहे //

मिथ्या कर अभिमान कभी न, जीवन का अपमान करें /
देवजनों की सेवा करके, वेदामृत का पान करें /
प्रभु  आपकी आज्ञा-पालन, करता हर नर-नार रहे // 

मिले सम्पदा जो भी इनको, उसको माने आपकी /
घड़ी न आने पावे इन पे, कोई भी संताप की /
यही कामना प्रभु आपसे, कर हम बारम्बार रहे //

दुनियादारी रहे चमकती, धर्म निभाने वाले हों /
सेवा के सांचे में सबने, जीवन अपने ढालें हों /
बच्चा-बच्चा परिवार का, बनकर श्रवणकुमार रहे //

बनें रहें सन्तोषी सारे, जीवन के हर काल में /
हाल-चाल हो कैसा इनका, रहें मस्त हर हाल में /
ताकि 'देश' बसाया इनका, सुखदाई संसार रहें // 

सोमवार, 11 अप्रैल 2011

हवन महिमा

होवे दुनियां का उपकार हवन के करने से /

होती है शुध्द पवन हवन से, दुर्गन्धि भग जाती भवन से /
हो न कोई बीमार हवन के करने से //

अच्छी गन्ध जाती है खेत में, कीचड़ में और जल में रेत में /
हो शुध्द पैदावार हवन के करने से //

खोजे नहीं मिले बीमारी वैद्य डाक्टर और पंसारी /
घूमें सब बेकार हवन के करने से //

जल हो शुध्द वायु मंडल में , वर्षे वन उपवन जंगल  में /
अन्न हो बेशुमार हवन के करने से //

सबकी अच्छी हो तंदुरुस्ती , किसी समय न आवे सुस्ती /
हो आनंद अपार हवन के करने से //

'पृथ्वीसिंह' तूने कविताई , बिना स्वर और ताल सदा गाई /
फिर भी सफल प्रचार हवन के करने से //

पितु मातु सहायक

पितु मातु सहायक स्वामी सखा तुम ही एक नाथ हमारे हो /
जिनके कछु और आधार नहीं तिनके तुम ही रखवारे हो //

सब भांति सदा सुखदायक हो, दुःख दुर्गुण नाशनहारे हो /
प्रतिपाल करो सिगरे जग को, अतिशय करुणा उर धारे हो //

भुलि है हम ही तुम को तुम तो, हमरी सुधि नाही बिसारे हो /
उपकारन को कछु अंत नहीं, छिन ही छिन  में विस्तारे हो //

महाराज महा महिमा तुमरी, समझे विरले बुध्दिवारे हो /
शुभ शांति निकेतन प्रेमनिधे, मन-मन्दिर के उजियारे हो //

एहि जीवन के तुम जीवन हो, इन  प्राणन के तुम प्यारे हो /
तुम सों प्रभु पाय 'प्रताप हरी' केहि के अब और सहारे हो //

रविवार, 10 अप्रैल 2011

राष्ट्रिय-प्रार्थना

ब्रह्मन ! स्वराष्ट्र में हो द्विज ब्रह्म तेजधारी /
क्षत्रिय महारथी हों अरि-दल विनाशकारी //

होवें दुधारू गोवें पशु अश्व आशुवाही /
आधार राष्ट्र की हों, नारी शुभग सदा ही //

बलवान सभ्य योध्दा यजमान पुत्र होवें /
इच्छानुसार बरसे, पर्जन्य ताप धोवें //

फल-फूल से लदी हों ओषध अमोघ सारी /
हो योगक्षेम-कारी, स्वाधीनता हमारी //

सुखी बसे संसार सब

सुखी बसे संसार सब दुखिया रहे न कोय /
यह अभिलाषा हम सब की , भगवन पूरी होय //

विद्या बुध्दि तेज बल  सबके भीतर होय /
दूध पूत धन-धान्य से वंचित रहे न कोय //१//

आपकी भक्ति प्रेम से मन होवे भरपूर /
राग-द्वेष से चित्त मेरा कोसों भागे दूर //२//

मिले भरोसा आपका, हमें सदा जगदीश /
आशा तेरे धाम की, बनी रहे मम ईश //३//

हमें बचाओ पाप से , करके दया दयाल /
अपना भक्त बनाय कर, हमको करो निहाल //४//

दिल में दया उदारता मन में प्रेम अपार /
धैर्य हृदय में धीरता, सबको दो करतार //५//

नारायण तुम आप हो, कर्मफल देनेहार /
हमको बुध्दि दीजिए, सुखों के भंडार //६//

हाथ जोड़ विनती करूं सुनिए कृपा निधान   /
साधु-संगत सुख दीजिए, दया नम्रता दान //७//

शनिवार, 9 अप्रैल 2011

ऋषि ऋण को चुकाना है

ऋषि ऋण को चुकाना है आर्य राष्ट्र बनाना है
तो मिल के बढ़ो मंजिल पे चढ़ो बढ़ने का जमाना है
देश के कोने-कोने में सन्देश सुनाना है

हम कसकर कमर चले हैं, निकले हैं
इस मार्ग में ले मजबूत इरादा
हम कभी न विचलित होंगे, ना होंगें 
परवाह नहीं चाहे आये कितनी बाधा
हमारा वेद खजाना है, जो सबसे पुराना है //१//

असमानता की ये खाई, हाँ खाई
अब पाटनी है समाज की आंगन से 
मजहब की ये दीवारें, हाँ दीवारें 
नहीं राखनी है माता के दामन में
पाखंड गढ़ ढाना है दलितों को उठाना है //२//

सूरज की किरण से तपकर, हाँ तपकर
जब निकलेगा मेहनत का पसीना
सोना उगलेगी ये धरती, हाँ धरती 
खुशहाली हो दूध दही का पीना
खेतों में कमाना है उद्योग लगाना है //३//

आपस के झगडे सारे, हाँ सारे 
पंचायत में अपने आप निपटाओ
इस दहेज के चक्कर से , टक्कर से
यह विनती करे समाज को बचाओ
मंहगे को जमाना है ना लुटना-लुटाना है  //४// 

धरती की शान

धरती की शान तू है मनु की सन्तान 
तेरी मुट्ठियों में बंद तूफ़ान है रे
मनुष्य तू बड़ा महान है भूल मत 

तू जो चाहे पर्वत पहाड़ों को फोड़ दे 
तू जो चाहे नदियों के मुख को भी मोड़ दे
तू जो चाहे माटी से अमृत निचोड़ दे
तू जो चाहे धरती से अम्बर को जोड़ दे
अमर तेरे प्राण मिला तुझको वरदान 
तेरी आत्मा में स्वयं भगवान है 

नैनों में ज्वाल तेरी गति में भूचाल 
तेरी छाती में छिपा महाकाल है
धरती के लाल तेरा हिमगिरी सा भाल 
तेरी भृकुटी में तांडव का ताल है
निज को तू जान जरा शक्ति पहचान
तेरी वाणी में युग का आह्वान है 

धरती सा धीर तू है अग्नि सा वीर 
अरे तू जो चाहे काल को भी थाम ले 
पापों का प्रलय रुके पशुता का शीश झुके
तू जो अगर हिम्मत से काम ले
गुरु सा मतिमान पवन सा तू गतिमान 
तेरी नभ से भी ऊँची उडान है रे 

हो रही धरा विकल

हो रही धरा विकल हो रहा गगन विकल 
इस लिए पड़ा निकल है आर्यों का वीर दल 

असंख्य कीर्ति रश्मियाँ विकीर्ण तेरी राहों में
सदैव से विजय रही है वीर तेरी बाँहों में
रुके कहीं न एक पल प्रवाह जोश का प्रबल //१//

ऋचाएं वेद की लिए सुगंध होम की लिए
जिधर से हम पड़े निकल जले अनेक ही दिए
सभी प्रकार से कुशल सभी प्रकार से सबल //२//

अज्ञान अन्धकार को अन्याय-अत्याचार को
मिटाए जाति-पांति भेद-भाव के विचार को
साथ लिए सबको चल ऋषि ध्येय ही सफल //३// 

उठो दयानंद के सिपाहियों-

उठो दयानंद के सिपाहियों समय पुकार रहा है
देश द्रोह का विषधर फन फैला फुंकार रहा है

उठो विश्व की सूनी आँखें काजल मांग रही हैं
उठो अनेकों द्रुपद सुताएँ आँचल मांग रही हैं
मरघट को पनघट सा कर दो जग की प्यास बुझा दो
भटक रहे जो मरुस्थलों में उनको राह दिखा दो
गले लगालो उनको जिनको जग दुत्कार रहा है//१//


तुम चाहो तो पत्थर को भी मोम बना सकते हो
तुम चाहो तो खारे जल को सोम बना सकते हो
तुम चाहो तो बंजर में भी बाग लगा सकते हो
तुम चाहो तो पानी में भी आग लगा सकते हो
जातिवाद जग की नस-नस में जहर उतर रहा है //२//

याद करो क्यों भूल गए जो ऋषि को वचन दिया था
शायद वायदा याद नहीं जो आपने कभी किया था
वचन दिया था ओम पताका कभी न झुकने देंगे
हवन कुंड की अग्नि घरों से कभी न बुझने देंगे 
लहू शहीदों का गद्दारों को धिक्कार रहा है//३//


कब तक आँख बचा पाओगे आग बहुत फैली है
उजली-उजली दिखने वाली हर चादर मैली है
लेखराम का लहू पुकारे आँख जरा तो खोलो 
एक बार मिलकर के सारे दयानंद की जय बोलो
वेदज्ञान का व्यथित सूर्य तुम्हे निहार रहा है//४//

मानव तू अगर चाहे

मानव तू अगर चाहे दुनिया को हरा देना
पर ईश्वर के दर पर सर अपना झुका देना

राजी हो प्रभु जिसमें वह काम सही होगा
भगवान जो चाहेगा दुनिया में वही होगा
उसे अपना बनाकर के उलझन को मिटा लेना

रक्षक है अनाथों का दुखियों का सहारा है
भव पर किया जिसने उसको ही पुकारा है
पल भर के उसको दिल से न भुला देना




शुक्रवार, 8 अप्रैल 2011

शेर ओ शायरी

शेर ओ शायरी

तलवारों की छाया पर जग की आज़ादी चलती है
इतिहास उधर चल देता है जिस और जवानी चलती है

सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में

उछल रही है मेरी इच्छा कूद रहे मेरे अरमान
फूकूँगा नव जीवन जग में मेरा निश्चय है बलवान

तन समर्पित मन समर्पित और ये जीवन समर्पित
चाहता हूँ देश की माटी तुझे कुछ और भी दूं

हम कोन थे क्या हो गये हैं और क्या होंगे अभी
आओ विचारें आज मिलकर ये समस्याएं सभी



सोमवार, 4 अप्रैल 2011

यज्ञ प्रार्थना

यज्ञरूप प्रभो हमारे भाव उज्ज्वल कीजिए 
छोड़ देवें छल कपट को मानसिक बल दीजिए


वेद की बोलें ऋचाएं सत्य को धारण करें 
हर्ष में हों मग्न सारे शोक सागर से तरें


अश्वमेधादिक रचाएं यज्ञ पर उपकार को
धर्म मर्यादा चलाकर लाभ दें संसार को


नित्य श्रध्दा भक्ति से यज्ञादि हम करते रहें
रोग पीड़ित विश्व के संताप सब हरते रहें


भावना मिट जाये मन से पाप अत्याचार की 
कामनाएं पूर्ण होवें यज्ञ से नर नारी की


लाभकारी हो हवन हर प्राणधारी के लिए 
वायु जल सर्वत्र हो शुभ गंध को धारण किए


स्वार्थ भाव मिटे हमारा प्रेम पथ विस्तार हो
इदन्न मम का सार्थक प्रत्येक में व्यवहार हों


प्रेम रस में तृप्त होकर वंदना हम कर रहे 
नाथ करुणा रूप करुणा आप की सब पर रहे

रविवार, 3 अप्रैल 2011

आर्यवीर दल ध्येय गीत

ओ३म् इन्द्रं वर्धन्तो अप्तुरः कृण्वन्तो विश्वमार्यं!
अपघ्नन्तो अराव्णः !!

हे प्रभु ! हम तुमसे वर पावें
सकल विश्व को आर्य बनावें

 फैले सुख संपत्ति फैलावें
आप बढ़ें तव राज्य बढ़ावें

राग द्वेष को दूर भगावें
प्रीति रीति की नीति चलावें

गायत्री मंत्र

ओ३म् भूर्भुवः स्वः!
तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि !
धियो यो नः प्रचोदयात् !!

तूने हमें उत्पन्न किया पालन कर रहा है तू
तुझसे ही पाते प्राण हम दुखियों के कष्ट हरता है तू

तेरा महान तेज है छाया हुआ सभी स्थान
सृष्टि की वस्तु-वस्तु में तू हो रहा है विद्यमान

तेरा ही धरते ध्यान हम मांगते तेरी दया
ईश्वर हमारी बुध्दी को श्रेष्ट मार्ग पर चला

शांति गीत

शांति गीत

शांति कीजिए प्रभु त्रिभुवन में

जल में थल में और गगन में
अन्तरिक्ष में अग्नि पवन में
ओषधि वनस्पति वन उपवन में
और प्रकृति के हो कण कण में

ब्राह्मण के उपदेश वचन में
क्षत्रिय के द्वारा हो रण में
वैश्य जनों के होवे धन में
और शूद्र के हो चरनन में


दाता तेरे सुमिरन का वरदान जो मिल जाए--

दाता तेरे सुमिरन का वरदान जो मिल जाए.
मुरझाई कलि दिल की अक आन में खिल जाए.

सुनते हैं तेरी रहमत दिन रात बरसती है
एक बूँद जो मिल जाए तक़दीर बदल जाए

ये मन बड़ा चंचल है चिंतन में नहीं लगता 
जितना इसे समझाउं उतना ही मचल जाए 

हे नाथ मेरे मन की बस इतनी तमन्ना है
पापों से बचा लेना कहीं पग न फिसल जाए

देवत्व के फूलों से दामन को मेरे भर दो
दोषों भरे जीवन का कांटा ही बदल जाए