शनिवार, 9 अप्रैल 2011

हो रही धरा विकल

हो रही धरा विकल हो रहा गगन विकल 
इस लिए पड़ा निकल है आर्यों का वीर दल 

असंख्य कीर्ति रश्मियाँ विकीर्ण तेरी राहों में
सदैव से विजय रही है वीर तेरी बाँहों में
रुके कहीं न एक पल प्रवाह जोश का प्रबल //१//

ऋचाएं वेद की लिए सुगंध होम की लिए
जिधर से हम पड़े निकल जले अनेक ही दिए
सभी प्रकार से कुशल सभी प्रकार से सबल //२//

अज्ञान अन्धकार को अन्याय-अत्याचार को
मिटाए जाति-पांति भेद-भाव के विचार को
साथ लिए सबको चल ऋषि ध्येय ही सफल //३// 

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