हो रही धरा विकल हो रहा गगन विकल
इस लिए पड़ा निकल है आर्यों का वीर दल
असंख्य कीर्ति रश्मियाँ विकीर्ण तेरी राहों में
सदैव से विजय रही है वीर तेरी बाँहों में
रुके कहीं न एक पल प्रवाह जोश का प्रबल //१//
ऋचाएं वेद की लिए सुगंध होम की लिए
जिधर से हम पड़े निकल जले अनेक ही दिए
सभी प्रकार से कुशल सभी प्रकार से सबल //२//
अज्ञान अन्धकार को अन्याय-अत्याचार को
मिटाए जाति-पांति भेद-भाव के विचार को
साथ लिए सबको चल ऋषि ध्येय ही सफल //३//
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