शनिवार, 9 अप्रैल 2011

ऋषि ऋण को चुकाना है

ऋषि ऋण को चुकाना है आर्य राष्ट्र बनाना है
तो मिल के बढ़ो मंजिल पे चढ़ो बढ़ने का जमाना है
देश के कोने-कोने में सन्देश सुनाना है

हम कसकर कमर चले हैं, निकले हैं
इस मार्ग में ले मजबूत इरादा
हम कभी न विचलित होंगे, ना होंगें 
परवाह नहीं चाहे आये कितनी बाधा
हमारा वेद खजाना है, जो सबसे पुराना है //१//

असमानता की ये खाई, हाँ खाई
अब पाटनी है समाज की आंगन से 
मजहब की ये दीवारें, हाँ दीवारें 
नहीं राखनी है माता के दामन में
पाखंड गढ़ ढाना है दलितों को उठाना है //२//

सूरज की किरण से तपकर, हाँ तपकर
जब निकलेगा मेहनत का पसीना
सोना उगलेगी ये धरती, हाँ धरती 
खुशहाली हो दूध दही का पीना
खेतों में कमाना है उद्योग लगाना है //३//

आपस के झगडे सारे, हाँ सारे 
पंचायत में अपने आप निपटाओ
इस दहेज के चक्कर से , टक्कर से
यह विनती करे समाज को बचाओ
मंहगे को जमाना है ना लुटना-लुटाना है  //४// 

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