रविवार, 3 अप्रैल 2011

शांति गीत

शांति गीत

शांति कीजिए प्रभु त्रिभुवन में

जल में थल में और गगन में
अन्तरिक्ष में अग्नि पवन में
ओषधि वनस्पति वन उपवन में
और प्रकृति के हो कण कण में

ब्राह्मण के उपदेश वचन में
क्षत्रिय के द्वारा हो रण में
वैश्य जनों के होवे धन में
और शूद्र के हो चरनन में


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