शनिवार, 9 अप्रैल 2011

धरती की शान

धरती की शान तू है मनु की सन्तान 
तेरी मुट्ठियों में बंद तूफ़ान है रे
मनुष्य तू बड़ा महान है भूल मत 

तू जो चाहे पर्वत पहाड़ों को फोड़ दे 
तू जो चाहे नदियों के मुख को भी मोड़ दे
तू जो चाहे माटी से अमृत निचोड़ दे
तू जो चाहे धरती से अम्बर को जोड़ दे
अमर तेरे प्राण मिला तुझको वरदान 
तेरी आत्मा में स्वयं भगवान है 

नैनों में ज्वाल तेरी गति में भूचाल 
तेरी छाती में छिपा महाकाल है
धरती के लाल तेरा हिमगिरी सा भाल 
तेरी भृकुटी में तांडव का ताल है
निज को तू जान जरा शक्ति पहचान
तेरी वाणी में युग का आह्वान है 

धरती सा धीर तू है अग्नि सा वीर 
अरे तू जो चाहे काल को भी थाम ले 
पापों का प्रलय रुके पशुता का शीश झुके
तू जो अगर हिम्मत से काम ले
गुरु सा मतिमान पवन सा तू गतिमान 
तेरी नभ से भी ऊँची उडान है रे 

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